LOKVIMARSH (लोकविमर्श): अरुण शीतांश कीकवितायें
डर के लिए
मनुष्य के ...: अरुण शीतांश की कवितायें डर के लिए मनुष्य के लिए भविष्य के लिए . हम हवा में बातें नहीं करते साहब डर की बातें करतें हैं प्...
शुक्रवार, 30 जनवरी 2015
अरुण शीतांश की
कवितायें
डर के लिए
मनुष्य के लिए
भविष्य के लिए.
हम हवा में बातें नहीं करते साहब
डर की बातें करतें हैं
प्रेम के लिए
मनुष्य के लिए
भविष्य के लिए.
हम हवा में बातें नहीं करते साहब
डर की बातें करतें हैं
प्रेम के लिए
कवि की
अनुभूतियाँ यदि बौद्धिक संरचना के ढांचें से पृथक होकर अभिव्यक्त होतीं है तो
कविता ने सृजनात्मक दोष आना स्वाभाविक है| उन्मुक्त अनुभव विश्रखल होतें है वो कवि
का कहन भी कमज़ोर कर सकतें है यही कारण है की कवि
अपने अनुभवों को समेटकर अपने विज़न
के अनुसार कविता की सृष्टि करता है| अनुभव और बुद्धि दोनों मिलकर कविता का यथार्थ
अधिक प्रदीप्त कर देतें हैं लगने लगता है की कवि आभास से बहार निकलकर यथार्थ का मूल्यांकन
करना चाहता है उसका यह टकराव हवा में नहीं
होता अनुभवों की मज़बूत भूमि पर होता है |अरुण शीतांश का यह कहना की “हम हवा में
बातें नहीं करते साहब” उनकी आनुभविक इमानदारी को दिखा रहा है यह आनुभविक इमानदारी
जब मानवता के पक्ष में होती है तो संकेत सामयिक खतरों की और होता है जैसा की अरुण
शीतांश की कविताओं में अमूमन देखा जाता है | सामान्य जीवन के छोटे छोटे अनुभवों
में सामयिक हलचलों को देख लेना अरुण की विशेषता है वो अपने ढंग से जीवन का मूल्यांकन
करते हैं उनका विषय-चयन अतिसामान्य होता
है और भाषा पाठक के नज़दीक होती है |अपनी कुछ कविताओं में में वो विद्रोही हैं तो
कुछ में सामंजस्य वादी हैं |यही कारण है की
उनकी कविता में आज के जीवन की छाप और मूल्यों का ध्वंस स्पष्ट देखा जा सकता
है उनकी कविता एक हाथ से निर्माण तो दूसरे हाथ से ध्वंस करती हुई चलती है |ध्वंस होता बुर्जुवा मूल्यों का
और निर्माण होता है जमीनी सपनो का | कविता हर उस व्यक्ति को सपना दिखाना चाहती है
जो परिवेश की अमानवीय सघनता में संघर्ष कर रहें हैं जिनके जेहन में विद्यमान व्यवस्था
के प्रति सम्मोहन नहीं है |क्योंकि कवि जानता है सम्मोहन कभी परिवर्तन नहीं कर
सकता है परिवर्तन के लिए मोहभंग और खंडित करने की बेचैनी जरूरो है |इसलिए उनकी
कवितायें पहली नज़र में आम जनमानस की सामयिक मनोवृत्ति का निपट बयान नज़र आती हैं
|आज हम “लोक-विमर्श” में जाने माने कवि अरुण शीतांश की कविताएं प्रकाशित कर रहें
हैं ये कविताएं उन्होंने मेरे अनुरोध पर लोक-विमर्श के लिए भेजी है तो आइये पढ़ते
हैं अरुण शीतांश की कवितायें
1- डर
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अरूण शीतांश
कविता बमों से नहीं
प्रेम से बनती है
प्रेम से बड़ा बम कोई नहीं साहब!
मनुष्यता के लिए फूल जरूरी है और फूल के लिए बीज
बीज बम से तबाह हो जाएगा और खिला फूल मूरझा जाएगा
हम बीजों के बारात में शामिल लोग हैं अनजाना बिन पूछे कहीं जाना
डर
बम से नहीं
फूल और बीज से है
कि कौन बचेगा
जब बचेगा
तब तो बम मारेगा
पृथ्वी थोड़़ी ताकत बचाकर रखी है
डर के लिए
मनुष्य के लिए
भविष्य के लिए.
हम हवा में बातें नहीं करते साहब
डर की बातें करतें हैं
प्रेम के लिए
०१.०१.१५
( नये साल पर जो बीज बो रहें हैं किसान )
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अरूण शीतांश
कविता बमों से नहीं
प्रेम से बनती है
प्रेम से बड़ा बम कोई नहीं साहब!
मनुष्यता के लिए फूल जरूरी है और फूल के लिए बीज
बीज बम से तबाह हो जाएगा और खिला फूल मूरझा जाएगा
हम बीजों के बारात में शामिल लोग हैं अनजाना बिन पूछे कहीं जाना
डर
बम से नहीं
फूल और बीज से है
कि कौन बचेगा
जब बचेगा
तब तो बम मारेगा
पृथ्वी थोड़़ी ताकत बचाकर रखी है
डर के लिए
मनुष्य के लिए
भविष्य के लिए.
हम हवा में बातें नहीं करते साहब
डर की बातें करतें हैं
प्रेम के लिए
०१.०१.१५
( नये साल पर जो बीज बो रहें हैं किसान )
2-पांगना
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अरूण शीतांश
गाछ कल ही लगाया था
समुद्र में नहीं
नदी में नहीं
तालाब में नहीं
पोखर में नहीं
बस यूँ हीं लगा दिया था
मनुष्य के लिए
कब गांछ ने पृथ्वी के सहारे कंठ गिला कर लिया
पूरी दुनिया को पता नहीं चला
उस जानवर को पता चला जब सुकोमल पौधे को खा गया
समन्दर से
नदी से
पोखर से
तालाब से
आकर
खाकर कब डकार गया
पता नहीं चला
मनुष्य
जानवर से छोटा हो गया है
मनुष्य खून और उत्तेजना से लैस रहना चाहता है
यह सब देख सून
एक बच्चा हँस रहा है
०३.०१.२०१५
( समन्दर के यात्रियों के लिए )
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अरूण शीतांश
गाछ कल ही लगाया था
समुद्र में नहीं
नदी में नहीं
तालाब में नहीं
पोखर में नहीं
बस यूँ हीं लगा दिया था
मनुष्य के लिए
कब गांछ ने पृथ्वी के सहारे कंठ गिला कर लिया
पूरी दुनिया को पता नहीं चला
उस जानवर को पता चला जब सुकोमल पौधे को खा गया
समन्दर से
नदी से
पोखर से
तालाब से
आकर
खाकर कब डकार गया
पता नहीं चला
मनुष्य
जानवर से छोटा हो गया है
मनुष्य खून और उत्तेजना से लैस रहना चाहता है
यह सब देख सून
एक बच्चा हँस रहा है
०३.०१.२०१५
( समन्दर के यात्रियों के लिए )
3-रूप
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अरूण शीतांश
रंग कभी भंग नहीं करता
समय से रंगत में रहता है
हर कोई के पास कोई न कोई रंग है
हरा काला उजला नीला बैंगनी चंपई
गेहूँवा
भंटई
रंग हर सब्जी और फूलों में बसा है
मनुष्य के रोगों में भी
रंग खतरे में है
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अरूण शीतांश
रंग कभी भंग नहीं करता
समय से रंगत में रहता है
हर कोई के पास कोई न कोई रंग है
हरा काला उजला नीला बैंगनी चंपई
गेहूँवा
भंटई
रंग हर सब्जी और फूलों में बसा है
मनुष्य के रोगों में भी
रंग खतरे में है
4-जा जा रे बदरा
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अरूण शीतांश
तोरा नीन ना आवे
नयना धीर सतावे
चली जा तू परदेश
कबसे खड़ी
घड़ी की बेर
नयना धीरे सतावे
बदरा घेरी आवे
पलंग बैठी सजावे
दो बहे कोर
ना सुखत लोर
घोर विपत्ति भावे
ये पिया मोर !
करेजा डंहक जावे
हूक बनी उठी जावे
बहुत ढरे लोर
कौवा मचाये शोर
सहर ध्यान लगावे
वो पिया मोर
नीन ना आवे
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अरूण शीतांश
तोरा नीन ना आवे
नयना धीर सतावे
चली जा तू परदेश
कबसे खड़ी
घड़ी की बेर
नयना धीरे सतावे
बदरा घेरी आवे
पलंग बैठी सजावे
दो बहे कोर
ना सुखत लोर
घोर विपत्ति भावे
ये पिया मोर !
करेजा डंहक जावे
हूक बनी उठी जावे
बहुत ढरे लोर
कौवा मचाये शोर
सहर ध्यान लगावे
वो पिया मोर
नीन ना आवे
५ -तलाश
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अरूण शीतांश
तलाश है फूलों की खुशबू की
जो जमाना कहे
तलाश है चिड़़ियों की
बहेलिया कुछ भी
फरमाए
तलाश है मौसम सुनहरे की
आंगन में कोई
खिलखिलाए
तलाश है अपनो की
अपनी तलाश
दिन बिताए
मन्नतें हजार हों
तलाश
हर सरेशाम नज़र आए
कोई तो बताए
अपने घर में बिठाए
...................
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अरूण शीतांश
तलाश है फूलों की खुशबू की
जो जमाना कहे
तलाश है चिड़़ियों की
बहेलिया कुछ भी
फरमाए
तलाश है मौसम सुनहरे की
आंगन में कोई
खिलखिलाए
तलाश है अपनो की
अपनी तलाश
दिन बिताए
मन्नतें हजार हों
तलाश
हर सरेशाम नज़र आए
कोई तो बताए
अपने घर में बिठाए
...................
६- हल
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अरूण शीतांश
हल का अपना रंग था
अब रंग नहीं
भंग हो चुका
थोड़ा बचा है
संग्रहालय की तरह
कहीं कहीं
मुझे डर है
बादल भी कहीं रंग न बदल दे
पृथ्वी कहीं और न चल दे
बचाना चाहता हूँ
हल का मूठ
और मिठ्ठी में सुदामा की तरह अन्न
बच्चों को क्या जबाब दूँगा
जब मंगल से पूछेगा
पापा !
हल भेजना
हल करने के लिए
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अरूण शीतांश
हल का अपना रंग था
अब रंग नहीं
भंग हो चुका
थोड़ा बचा है
संग्रहालय की तरह
कहीं कहीं
मुझे डर है
बादल भी कहीं रंग न बदल दे
पृथ्वी कहीं और न चल दे
बचाना चाहता हूँ
हल का मूठ
और मिठ्ठी में सुदामा की तरह अन्न
बच्चों को क्या जबाब दूँगा
जब मंगल से पूछेगा
पापा !
हल भेजना
हल करने के लिए
७- चाट
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अरूण शीतांश
लड़की रोज़ खाना चाहती है चाट
माँ को पता है
बहू को खबर है
बहन जान रही है
सखियाँ हँस रहीं हैं
दु:खी तो मैं भी नहीं हूँ
दु:खी वह किसान है
जिसके आँगन में खाने को चाट नहीं है
बिछाने को चटाई नहीं है
जिसने उपजाया
पैदा किया
बिन खाय मर रहा है वह
राजपथ पर चाहे जितनी छाती फैला लें
बेटी तेरा देश चाट जैसा हो गया है !
२९.०१.२०१५
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अरूण शीतांश
लड़की रोज़ खाना चाहती है चाट
माँ को पता है
बहू को खबर है
बहन जान रही है
सखियाँ हँस रहीं हैं
दु:खी तो मैं भी नहीं हूँ
दु:खी वह किसान है
जिसके आँगन में खाने को चाट नहीं है
बिछाने को चटाई नहीं है
जिसने उपजाया
पैदा किया
बिन खाय मर रहा है वह
राजपथ पर चाहे जितनी छाती फैला लें
बेटी तेरा देश चाट जैसा हो गया है !
२९.०१.२०१५
८ -वैसे
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अरूण शीतांश
सच में डूब गया हूँ
शोर में
कुछ बुझा नहीं रहा है
यह कैसा शोर है
कैसी बस्ती
कैसा देश है
शोर का भेष पहने जा रहें हैं हम
जहाँ जावो हर कोई शोर में डूबा है
सोन में डूबा नहीं है मछली पकड़ने
बच्चों को शोर पसंद है
जनता को चोर पसंद है!
हर कोई की अपनी पसंद
हमें परती खेत में जोत पसंद है
क्या करूँ उखड़ गया है खेत
शोर में कोई नहीं सुन रहा है
तो सरकार कैसे सुनेगी ?
सन्नाटे की शोर भी ठीक नहीं
रोज़ रात में चिड़िया शोर कर रही है
दिन में उसे कोई सुनता हीं नहीं
जैसे पानी की
प्यासे का शोर....
२९.०१.२०१५
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अरूण शीतांश
सच में डूब गया हूँ
शोर में
कुछ बुझा नहीं रहा है
यह कैसा शोर है
कैसी बस्ती
कैसा देश है
शोर का भेष पहने जा रहें हैं हम
जहाँ जावो हर कोई शोर में डूबा है
सोन में डूबा नहीं है मछली पकड़ने
बच्चों को शोर पसंद है
जनता को चोर पसंद है!
हर कोई की अपनी पसंद
हमें परती खेत में जोत पसंद है
क्या करूँ उखड़ गया है खेत
शोर में कोई नहीं सुन रहा है
तो सरकार कैसे सुनेगी ?
सन्नाटे की शोर भी ठीक नहीं
रोज़ रात में चिड़िया शोर कर रही है
दिन में उसे कोई सुनता हीं नहीं
जैसे पानी की
प्यासे का शोर....
२९.०१.२०१५
९- डस्टर
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अरूण शीतांश
बैग में टॉफी
रूमाल
कलम किताब पेंनसील बॉक्स है
मास्टर ने डस्टर दिया है
जो घर के कोने में पड़ा है
अब डस्टर के बदले
खिचडी़ मिल रही है
कभी छिपकिली मिल रही है
कभी कुछ....
हैरान नहीं हूँ
परेशान भी नहीं
एक चम्मच कोई मंत्री खिला सकता है
अपने बच्चों को?
हमारी आँखें पैर त्वचा खून का रंग
आकाश पाताल सब एक तरह के हैं
घी
मैनें देखी है
वे भी देखे होगें
हम ने कौन सी जाल बिछा रखी है
जो लूटेरे पकड़ में नहीं आते
वोट लूट करते है
बोतल पर
पैसे पर
भाव पर
ताव पर
नाव पर
हम नहीं हमारी जनता मूर्ख है
इसीलिए भूख है ...
२९.०१.२०१५
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अरूण शीतांश
बैग में टॉफी
रूमाल
कलम किताब पेंनसील बॉक्स है
मास्टर ने डस्टर दिया है
जो घर के कोने में पड़ा है
अब डस्टर के बदले
खिचडी़ मिल रही है
कभी छिपकिली मिल रही है
कभी कुछ....
हैरान नहीं हूँ
परेशान भी नहीं
एक चम्मच कोई मंत्री खिला सकता है
अपने बच्चों को?
हमारी आँखें पैर त्वचा खून का रंग
आकाश पाताल सब एक तरह के हैं
घी
मैनें देखी है
वे भी देखे होगें
हम ने कौन सी जाल बिछा रखी है
जो लूटेरे पकड़ में नहीं आते
वोट लूट करते है
बोतल पर
पैसे पर
भाव पर
ताव पर
नाव पर
हम नहीं हमारी जनता मूर्ख है
इसीलिए भूख है ...
२९.०१.२०१५
अरुण शीतांश
१ Editor-Deshaj
Mani bhawan
Sankat mochan nagar
Ara Bihar
802301
09431685589
Mani bhawan
Sankat mochan nagar
Ara Bihar
802301
09431685589
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