चिंतामणि जोशी की कवितायें
१
पानी
गजब ताकत है
पानी में
बूदों से नाला
नाले से दरिया
दरिया से सागर
सागर से बादल
बादल से बूदों मे
बदलता है
बीजों को पौधों
पौधों को वृक्षों
कलियों को पुष्पों
पुष्पों को फल-फसल
फसलों को सरस व्यंजन में
बदलता है
पानी से
जीवन चलता है
धुंध है
व्यवस्था विद्रूप है
आँखें फटीं हैं
पानी भर चुका है
अब रहने भी दे
तू नहीं दिखा पाएगा राह
ए खैरख्वाह
तेरी आँखों का
पानी मर चुका है।
२
चिड़िया
चिड़िया बोल नहीं सकती
सिर्फ चीं-चीं करती है
बोल पाती
तो वह भी लगाती
इन्कलाब के नारे
जब चिड़िया का साथी
तुम्हारे पिंजरे में बंद होता
या उसकी विरादरी में कोई
तुम्हारी गुलेल का शिकार होता।
लेकिन चिड़िया बोल नहीं पाती
‘इन्कलाब-जिन्दाबाद’
सिर्फ चीं-चीं करती है
जबकि हर रोज
तुम्हारी गुलेल से
एक नई चिड़िया मरती है
३
योजना
वातानुकूलित कक्ष से
उन्होंने भेजी
मेरे कस्बे की सड़क की
योजना बनाकर
दस-बीस पेड़ काट
चंद पत्थर लगाकर
ठेकेदार ने पोत दी कुछ रेत
मिट्टी मिलाकर
सुविधा शुल्क किया अर्पण
सड़क का हुआ अधिग्रहण
और फिर लोकार्पण
तुमने साफ की अपनी नाली
गंदगी सब सड़क पर डाली
मैंने अपनी पाइप लाइन सुधारी
छोड़ दी सड़क पर
गड्ढेनुमा धारी
इसने घर का गंदा पानी छोड़ा
उसने फेंका अहाते का कूड़ा-रोड़ा
बोझ से दबे फँसे
मेहनतकश
मजदूर को सहारा देने
झिझकता-ठिठकता
एक कदम बढा
विकास की सड़क पर
वह भी फिसल पड़ा।
४
लालसिंह “पहाड़’ है
आपदा पर
चल रही है राजनीति
लग रहे हैं
आरोप-प्रत्यारोप
बन रही है
योजना-परियोजना
गढ़ी जा रहीं हैं
कविताएं-कहानियाँ
छप रहे हैं
समाचार-विचार
लेकिन उसे
इन सबसे
अब नहीं है सरोकार
लालसिंह जानता है
उलझता नहीं कालचक्र कभी
निरर्थक बहस-मुबाहिसे में
फिर आयेगा आषाड़
फटेंगे बादल
भरभरायेंगे पहाड़
उफान पर होगी नदी
तूफान पर छोटी गाड़
उसे पता है
हकीकत योजनाओं की
जो ठीक समय पर
सिद्ध होतीं हैं भोंथरी
और उसे चाहिये होती है
सिर छुपाने के लिए
एक अदद कोठरी
इसीलिए
पत्थर तोड़ रहा है
रोड़ी फोड़ रहा है
तख्ता-बल्ली जोड़ रहा है
कर रहा है
नमक-तेल का भी जुगाड़
दरक चुके घर के बाजू में
तराश रहा है सुरक्षित जमीन
तटबंध बाँध रहा है
तपा रहा है हाड़
जानता है-
व्यवस्था का भरोसा
बस झाड़ है
आपदा चुनौती है
दरकता है बार-बार
फिर भी खड़ा है
लालसिंह “पहाड़’ है।
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शैक्षिक दखल की समीक्षा
माध्यम-भाषा विमर्श पर केन्द्रित “शैक्षिक दखल’’ का ताजा अंक वर्तमान
शिक्षा व्यवस्था के अंतर्गत सीखने-सिखाने की प्रक्रिया की दुखती रग पर हाथ रखने में
सफल हुआ है। परिचर्चा, आलेखों, शैक्षिक
जीवन के अनुभवों एवं अन्य स्थायी स्तम्भों से होकर चिन्तन-मंथन के साथ चलते हुए सीखने
की प्रक्रिया में परिवेशीय भाषा का महत्व शुद्ध, धवल
एवं उपयोगी नवनीत की तरह उभर आता है।
प्रारम्भ में जहाँ महेश
पुनेठा ने विविध तथ्यों एवं अनुभवजनित सत्य के आलोक में इस बात का प्रभावशाली रेखांकन
किया है कि बच्चे की सीखने की गति अपने परिवेश की भाषा में ही सबसे अधिक होती है और
इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि परिवेश से दूर की भाषा शिक्षण का माध्यम होने
पर उसका प्रभाव बच्चे के बौद्धिक विकास पर पड़ता है-एतदर्थ कम से कम प्रारम्भिक शिक्षा
तो उसके परिवेश की भाषा में ही होनी चाहिए वहीं अंत में दिनेश कर्नाटक ने दूसरी भाषा
को शिक्षण माध्यम बनाने के विचार की विवेचना आसान लगने वाले ऐसे रास्ते के रूप में
की है जिसमें भटकाव ही भटकाव है। वास्तव में भाषा सीखना और भाषा का सीखने का माध्यम
होना दो अलग-अलग बातें हैं जिन पर वर्तमान में गहन विमर्श की आवश्यकता महसूस होती है।
हमारी अपनी भाषा हमारे
स्वाभिमान एवं आत्मसम्मान, हमारी संस्कृति के पोषण का एक सशक्त अभिकरण होती है। उसके प्रति
हीन ग्रंथि का विकास हमें पतनोन्मुख करता है। जीवन सिंह ने अपने आलेख “अंगे्रजी का राज एवं
भारतीय भाषाएं’’ में
उपरोक्त तथ्य को पूर्ण व्यापकता के साथ उद्घाटित किया है।
“ परिचर्चा
“ स्तम्भ शैक्षिक दखल रूपी
साझा मंच के अन्दर अपने आप में एक ऐसा महत्वपूर्ण मंच है जो देश भर से छात्रों, शिक्षकों, अभिभावकों, कवियों, लेखकों, विचारकों, पत्रकारों, कलाकारों
के इतने बड़े जमावड़े को मुद्दा विशेष पर विचार-विमर्श एवं बहस के माध्यम से एक दूसरे
को जानने समझने का सुअवसर प्रदान करता है। एक शिक्षक की दृष्टि से देखा जाय तो कक्षा
शिक्षण में संबोध विशेष को प्रारम्भ करने से पूर्व ब्रेन स्टार्मिंग के लिए एक रोचक-महत्वपूर्ण
गतिविधि।
“अनुभव अपने-अपने’ एक और उपयोगी स्तम्भ
है अनुभवों एवं सरोकारों को साझा करने के लिए। अस्मुरारीनन्दन मिश्र, चिन्तामणि
जोशी, दिनेश भट्ट, उमेश
चमोला, हेमलता तिवारी के रोचक
अनुभव परिवेशीय भाषा के महत्व को स्वीकारते ही नहीं साबित भी करते हैं यह बताते हुए
कि भाषा सीखना तभी हो सकता है जब शब्दों को अर्थ मिले, जब शब्द अंतस को छू सकें।
डा इसपाक अली का आलेख “दक्षिण भारत में हिन्दी की विकास यात्रा” हिन्दी की राष्ट्रीय
स्थिति को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण आलेख है।
वरिष्ठ साहित्यकार बटरोही
के उपन्यास “गर्भगृह में नैनीताल’ से चयनित अंश भी प्रस्तुत अंक के उद्देश्यों को समझने में सटीक
सहयोग प्रदान करता है। अपनी भाषा तथा संस्कृति के प्रति आत्महीनता से भरे और अंगे्रजी
को सभी विषयों का निचोड़ मानने वाले ठुलदा अन्ततोगत्वा जब दर्द से कराहते हैं तो उनके
गाँव की जीती-जागती परिवेशीय भाषा अनायास ही उनके अन्दर प्रवाहित होकर इस तथ्य को सिद्ध
कर देती है कि ‘बिन निज भाषा ज्ञान के मिटे न हिय को शूल।’
यात्रा, नजरिया, मिसाल, किताब
के बहाने भी बेशक शिक्षा के क्षेत्र में गहरी दखल देने में समर्थ हुये हैं। दिनेश जोशी
ने एक बार पुनः सन्दर्भ के अनुकूल अखबारों से ऐसी कतरनें एकत्र कीं हैं जिन पर चिन्तन
एवं चिन्ता करना समय की मांग है। भाषा पर भगवत रावत, नरेश सक्सेना एवं राजेश
जोशी की कविताओं का चयन सम्यक है। पत्रिका के कलेवर को सौन्दर्य प्रदान करने के साथ
ही ये कविताएं फ्रांस के उपन्यासकार अलफांस डाडेट द्वारा लिखित “ द लास्ट
लेशन “ के कथ्य की यादें ताजा करतीं हैं। फैंरच शिक्षक हमेल के पास अलसास प्रांत पर जर्मनों के अधिकार एवं जर्मन भाषा
थोपने के बाद अपने अंतिम पाठ में अपने प्रांतवासियों के लिए ऐसा शब्द नहीं है जो उन्हें
दे सके कि संकट के समय काम आयेगा फिर भी वह कहता है- फैंरच विश्व की सुन्दरतम भाषा
है। उसे हमें अपने बीच संरक्षित रखना चाहिए क्योंकि जब देश गुलाम हो जाता है, जब तक
उसके वासी अपनी भाषा से जुड़े रहते हैं उनके पास हर प्रकार के जेल की चाबी होती है।
“वाइव ला फ्रांस’ (फ्रांस जिन्दाबाद)।
कुल मिलाकर वर्तमान अंक
उपयोगी, पठनीय एवं अनुकरणीय है।
लोकमंगल की कामना के साथ संकलित शैक्षिक साहित्य के रूप में संग्रहणीय है। श्रमसाध्य
सामग्री संकलन, सम्यक् चयन एवं प्रकाशन हेतु सम्पादक द्वय एवं शैक्षिक दखल टीम
को साधुवाद।
चिन्तामणि जोशी
जन्म : 3 जुलाई 1967 ग्राम बड़ालू पिथौरागढ (उत्तराखण्ड)
शिक्षा : एम.
ए. (अंग्रेजी) , बी. एड.
प्रकाशन : हिन्दी
की पत्र-पत्रिकाओं में कविताएँ लेख प्रकाशित
प्रकाशित पुस्तक : क्षितिज
की ओर (कविता-संग्रह)
सम्प्रति :
अध्यापन
अन्य : विद्यार्थी
जीवन से ही छात्र-राजनीति जन चेतना कार्यक्रमों
में
सक्रिय भागीदारी एवं पत्रकारिता।
कुछ
समय तक साप्ताहिक समाचार पत्र कुमाँऊ सूर्योदय’ में
सम्पादन
सहयोग।
शिक्षा
संबंधी अनेक कार्यशालाओं में प्रतिभाग एवं शैक्षिक
प्रशिक्षणों
में सहजकर्ता प्रशिक्षक की भूमिका।
सम्पर्क : देवगंगा
जगदम्बा कालोनी पिथौरागढ - 262501