प्रेमनन्दन की कवितायें
युवा कवि प्रेमनन्दन आज की पीढी के कवि हैं इनका समय
विश्वपूँजीवाद के खतरनाक परिणामों का समय है । इनकी कविता में उपस्थित देशकाल एक
विशिष्ट आनुभविक स्तर पर विद्यमान है जिसमें आज की कशमकश साफ़ दिखाई देती है । ऐसा
नहीं है कि सच्चाई और साहस के नाम पर अराजक बडबोला पन हो बल्कि यथार्थ संवेदन और
बचाने की जिद ने खरापन और कोमलपन का सुरुचिपूर्ण आमेलन कर दिया है । खरापन निपट
बयान के रूप में और कोमलपन रोमैन्टिक संवेदन के रूप में उपस्थित है । ये दोनो
भंगिमाएं आज की पीढी की नवीन सौन्दर्य दृष्टि है जो लगभग सभी में
मिलती है । प्रेमनन्दन की कविताएं पतनशील व्यवस्था के टूटते तिलिस्म में जनवादी
मूल्यों की तलाश करती हैं जो अपने हर बयान में अमानुषिक व्यवस्था पर व्यंग्य करतीं
हैं घातक वर्गीय मतभेदों के चलते कवि आपने वजूद के लिए भयानक संघर्ष करते दिखता
हैं यहां तक की सपनों में भी वर्गीय चेतना का प्रभाव देखता है पर अनुभव की गहराई
और भाषा की समझदारी ने उनकी कविता को अभिव्यक्ति के सन्दर्भ में चालू मुहावरों से
बचा लिया है । प्रेमनन्दन की मुख्य
समस्या भूमंडलीकरण से उत्पन्न नवीन वर्गीय सम्बन्धों द्वारा
व्यक्ति के आन्तरिक तनाव , विघटन , पतन , की समस्या है ।ये समस्याएं वो अपनी अनगिनत
विशेषताओं के साथ विविध अनुभूतियों और मनुष्य की प्रासंगिक भंगिमाओं के साथ
प्रस्तुत करते हैं । आज हम लोकविमर्श मे युवा कवि प्रेमनन्दन की कुछ कविताएं
प्रकाशित कर रहे हैं आइए पढते हैं ..चित्र कुवंर रवीन्द्र के हैं
1-दूषित होती ताज़ी साँसें
#
अभी -अभी किशोर हुईं
मेरे गाँव की ताजी साँसें
हो रही हैं दूषित
सूरत, मुम्बई, लुधियाना...में !
मेरे गाँव की ताजी साँसें
हो रही हैं दूषित
सूरत, मुम्बई, लुधियाना...में !
लौट
रही हैं वे
लथपथ,
दूषित- दुर्गन्धित !
लथपथ,
दूषित- दुर्गन्धित !
उनके
संपर्क से
दूषित हो रही रही हैं
साफ , ताजी हवाएँ
मेरे गाँव की !
दूषित हो रही रही हैं
साफ , ताजी हवाएँ
मेरे गाँव की !
2- अफवाहें
बनती बातें
सच यही है
कि बातें वहीं से शुरू हुईं
जहाँ से होनी चाहिए
लेकिन ख़त्म हुई वहाँ
जहाँ नहीं होनी चाहिए थी !
कि बातें वहीं से शुरू हुईं
जहाँ से होनी चाहिए
लेकिन ख़त्म हुई वहाँ
जहाँ नहीं होनी चाहिए थी !
बातों के शुरू और खत्म होने के बीच
तमाम नदियाँ, पहाड़, जंगल और
रेगिस्तान आए
और अपनी गहराई, ऊँचाई, हरापन और
नंगापन थोपते गए |
तमाम नदियाँ, पहाड़, जंगल और
रेगिस्तान आए
और अपनी गहराई, ऊँचाई, हरापन और
नंगापन थोपते गए |
इन सबका संतुलन न साध पाने वाली बातें ,
ठीक तरह से शुरू होते हुए भी
सही जगह नहीं पहुँच पाती-
अफवाहें बन जाती हैं !
ठीक तरह से शुरू होते हुए भी
सही जगह नहीं पहुँच पाती-
अफवाहें बन जाती हैं !
अच्छा नहीं है,
बातों का अफवाहें बनना !
बातों का अफवाहें बनना !
3- मैं
जानता हूँ
मैं
जानता हूँ
कि सागर की लहरों पर
चित्र नहीं बनते!
कि सागर की लहरों पर
चित्र नहीं बनते!
मैं जानता हूँ
कि बिखरी हुई रेत से
महल नहीं बनते!
कि बिखरी हुई रेत से
महल नहीं बनते!
मैं जानता हूँ
कि हमारे सोचने-मात्र से
बदलती नहीं दुनिया!
कि हमारे सोचने-मात्र से
बदलती नहीं दुनिया!
मैं जानता हूँ
फिर भी कोशिश करता रहता हूँ लगातार
इस दृढ़ विश्वास और संकल्प के साथ
कि मेरा सार्थक प्रयास
बदल देगा एक दिन-
लहरों को कैनवास में
रेत को शिलाओं में
सोच को हकीकत में|
फिर भी कोशिश करता रहता हूँ लगातार
इस दृढ़ विश्वास और संकल्प के साथ
कि मेरा सार्थक प्रयास
बदल देगा एक दिन-
लहरों को कैनवास में
रेत को शिलाओं में
सोच को हकीकत में|
मैं जानता हूँ|
4-जिद्दी पैर
'उतने पैर पसारिए जितनी चादर होय'
की लोकोक्ति को
अपने पक्ष में खड़ा करके
चादर छोटी ही होती रही
पैरों से हमेशा !
पैरों से हमेशा !
बाहर न निकल जाएँ
चादर से
इस कोशिश में
कई -कई बार कटना पड़ा पैरों को
चादर में अँटने के लिए |
इस कोशिश में
कई -कई बार कटना पड़ा पैरों को
चादर में अँटने के लिए |
खुली चुनौती है :
जितनी छोटी होना चाहे,
हो जाए चादर
पैर भी कम जिद्दी नहीं हैं !
पैर भी कम जिद्दी नहीं हैं !
5- वे ही आएं मेरे पास
जिन्हें चाहिए
मीठे चुम्बन
माँसल देह के आलिंगन
तीखे और तेज परफ्यूम
मादक दृश्य,
पॉप संगीत...
मीठे चुम्बन
माँसल देह के आलिंगन
तीखे और तेज परफ्यूम
मादक दृश्य,
पॉप संगीत...
वे न आएं मेरे पास !
जिन्हें देखना हो संघर्ष
सुनना हो श्रमजीवी गीत
चखना हो ,
स्वाद पसीने का
माटी की गंध सूंघनी हो
करना हो महसूस
सुनना हो श्रमजीवी गीत
चखना हो ,
स्वाद पसीने का
माटी की गंध सूंघनी हो
करना हो महसूस
दर्द फटी बिवाईयों के...
वे ही आएं मेरे पास !
6--सपने जिंदा हैं अभी
मर नहीं गए हैं सब सपने
कुछ सपने जिंदा हैं अभी भी !
कुछ सपने जिंदा हैं अभी भी !
एक पेड़ ने
देखे थे जो सपने
हर आँगन में हरियाली फ़ैलाने के
वे उसके कट जाने के बाद भी
जिंदा हैं अभी
उसकी कटी हुई जड़ों में |
देखे थे जो सपने
हर आँगन में हरियाली फ़ैलाने के
वे उसके कट जाने के बाद भी
जिंदा हैं अभी
उसकी कटी हुई जड़ों में |
एक फूल ने
देखे थे जो सपने
हर माथे पर खुशबू लेपने के
वे उसके सूखकर बिखर जाने के बाद भी
जिंदा हैं अभी
उसकी सूखी पंखुड़ियों में |
देखे थे जो सपने
हर माथे पर खुशबू लेपने के
वे उसके सूखकर बिखर जाने के बाद भी
जिंदा हैं अभी
उसकी सूखी पंखुड़ियों में |
एक तितली ने
देखे थे जो सपने
सभी आँखों में रंग भरने के
वे उसके मर जाने के बाद भी
जिंदा हैं अभी
उसके टूटे हुए पंखों में |
देखे थे जो सपने
सभी आँखों में रंग भरने के
वे उसके मर जाने के बाद भी
जिंदा हैं अभी
उसके टूटे हुए पंखों में |
एक कवि ने
देखे थे जो सपने
सामाजिक समरसता के;
देखे थे जो सपने
सामाजिक समरसता के;
जात-पात , छुआछूत, पाखंड, अंधविश्वास
और धर्मान्धता से
मुक्त समाज के ,
वे उसके मार दिए जाने के बाद भी
जिंदा हैं अभी
उसकी रचनाओं में |
और धर्मान्धता से
मुक्त समाज के ,
वे उसके मार दिए जाने के बाद भी
जिंदा हैं अभी
उसकी रचनाओं में |
मर नहीं गए हैं सब सपने
कुछ सपने जिंदा हैं अभी भी !
कुछ सपने जिंदा हैं अभी भी !
-----प्रेम नंदन
उत्तरी शकुन नगर ,
फतेहपुर , उ0 प्र0
31/08/2015
उत्तरी शकुन नगर ,
फतेहपुर , उ0 प्र0
31/08/2015
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