प्रदुम्न कुमार सिंह जनवादी लेखक संघ बाँदा के पदाधिकारी व
युवा कवि हैं उन्होंने हिमतरु के नए अंक पर संक्षिप्त समीक्षा लिखी है जो गणेश
युवा कवि गणेश गनी की कविताओं पर एक संवेदनशील पाठक की प्रतिक्रिया है | इस अंक
में प्रकाशित गनी की कविताओं पर प्रदुम्न सिंह अपना अभिमत देने के साथ साथ गनी के
व्यक्तित्व का भी मूल्यांकन करतें है आइये आज लोकविमर्श में पढतें है पाठकीय प्रतिक्रिया
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हिमतरु का नया अंक
और गणेश गनी
आज हिमतरु अक्टूबर२०१५ का अंक पढ़ा और पढ़कर लगा कि गणेश गनी निश्चित
रूप से सशक्त हस्ताक्षर है | कविता जीवन का आत्म का संगीत जिसमे अपनी जमीन और अपने
परिवेश के प्रति कवि में चाहत होती है गनी
जी ने अपनी कविताओं में इस चाहत के तत्व को खोजने का प्रयास किया है जिसे अक्सर लोग अनदेखा
करते जा रहे है, | प्रेम वह तत्व है जिससे दुनिया की हर अमूल्य वस्तु क्रय की जा
सकती है और यह ही वह तत्व है जो हमेशा से काव्य का तत्व रहा है |इसके बिना कविता
की कल्पना कोरी बकवास ही होगी अपनी | अपनी जमीन का प्रेम ही कवि को प्रतिरोध की और
ले जाता है | जिस प्रकार कर्कश आवाज भी
साज और बाज की संगति पाकर सुरीली धुन में परिवर्तित हो नए भावों की प्रसवनी हो
जाती है | प्रकार कविता भी भावों की संगति पा कविता बन जाती है | हम उस समय तक
उसको तवज्जो नही देते जब तक दूसरे उसकी सराहना नही करने लगते जैसा कि स्वयं गनी जी
ने अपने आलेख में स्वीकार किया है | जब वे कविताएं लिखते थे तब उन्हें उनके अच्छे
होने का एहसास भी नही होता था लेकिन जैसे ही पंजाब विश्वविद्यालय की वार्षिक
पत्रिका कैम्पस रिपोर्टर में छपी और सराही गयी तो उनके हौसलों के मानो पंख
लग गए लेकिन कहते हैं न कि जब “खुसी एकाएक मिल जाती है तो कुछ सूझता नही है न ही
समझ में ही आता है क्या किया जाय क्या नही किया जाय” |
गनी जी
भी न चाहकर भी कुछ इसी तरह की उहापोह की स्थिति में कुछ समय के लिए उलझ गए लेकिन
अंतस की आवाज को आखिर कब तक दबाया जा सकता था | शीघ्र ही उत्तिष्ठ जाग्रत प्राप्य
वरान्निबोधत के सिद्धांत के अनुसार उनका विकसन होना प्रारम्भ हुआ और साहित्य
सर्जना की मुस्कुराती आवाज का जादू उन्हें अपनी ओर आकर्षित करता चला गया और गणेश
गनी उसके मोह पाश में अपने को बांधते चले गए | इस दौरान उनके मन ने जो स्वीकार
किया उसको उन्होंने लिपिबद्ध करते हुये साहित्य की गलियों में अपना सफ़र प्रारंभ
किया | स्वछन्द लिखना और किसी धारा में बंधकर लिखना दोनों अलग अलग बाते हैं |
लिख तो
कोई भी सकता है लेकिन प्रतिबद्धता के साथ लिखना कठिन कार्य है और यह तब और कठिन
साबित होता है जब भौतिकता अपनी चकाचौंध की चमक की छटा सर्वत्र विखेर रही हो | ऐसे
ही समय में हिमतरू के माध्यम से निरंजन देव के संपर्क ने मानो उन्हें कुंदन बनने की
ओर अग्रेषित कर दिया और अब वे साहित्य के क्षेत्र में लोकधर्मिता की डोर थाम रचनाकर्म
करने को उद्यत हुये | और उसी को थाम वे
लगातार रचना कर्म में लगे हुये हैं | उनकी कविताओं में गजब का प्रतिरोध देखने को
मिलता है |
दरिया के पार
ऊंची चट्टान पर बैठा
वक्त
जो कर रहा था इंतज़ार
उसे जल्दी है उस पार
आने की
उसे मालूम हो चुका
है
कि बैल उपवास पर है
और दीवार पर टंगा
जूंआ
बैलों के गले लगाकर
खीचना चाहता है हल
,,,,
यहाँ पर दरिया के उस पार की संकल्पना एक सकारात्मक संभावना की खोज है
और सर्वदा नवीन अभिव्यंजना है जो पीड़ा के संत्रास से मुक्ति की छटपटाहट को दर्शाती
है | यद्यप बैल और जुए का सम्बन्ध अनादिकाल से चला आ रहा है लेकिन कवि की
अबिभावाना उसमे एक नये आयाम को जन्म देने वाली है |जो आज के पूंजीवादी समय की की
सच्छी से रूबरू कराता है कि किस प्रकार पूंजीवादी शक्तियाँ निर्बलों शोषितों एवं
प्रकृति की मार से लगभग पूरी तरह से तवाह हो चुके कृषक के शोषण की ओर भी इशारा है
किस प्रकार सत्ता से संथ गाँठ कर शोषण के नित्य नूतन रूप अख्तियार कर रहा है और
अपनी मोहक चमक में अपने शोषण के ओजोन को छुपा लेता है | युवा आलोचक उमाशंकर सिंह
परमार ने और अजित प्रियदर्शी जी ने अपने आलेखों में इस बात का जिक्र किया है |
उमाशंकर सिंह ने युवा कवि को प्रतिरोध का कवि कह डाला है तो अजित प्रियदर्शी ने
भाषा और बिम्बों को लेकर कई गंभीर बातें की हैं | गनी जी ने अपने वक्तव्य में अपनी
रचनाधर्मिता का संकेत दिया है अपने संघर्षों का भी विवरण दिया है | गणेश गनी ने
चुनौतीपूर्ण समय में चुनौतियों को ही अपना हमसफ़र बना आगे बढ़ने लगे और देखते ही
देखते वे एक सशक्त हस्ताक्षर के रूप में उभर कर हमारे सामने उपस्थित हुये | इस
दौरान हुये परिवर्तनों में उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नही देखा और अपने उद्देश्य को लेकर निरंतर गतिमान रहे | उनका काव्य संसार
निखरता चला गया और उनकी कविताएं विभिन्न पत्रिकाओं का अलंकरण बनाती और ब्लागों में
स्थापित होती गयी आज गणेश गनी एक चर्चित नाम के रूप में हमारे सामने है इसी दौरान
हिमतरु ने उन्हें एक गुरुतर भार दिया जो दिखता तो सहज है लेकिन है कठिन वह हिमतरू
के दो साहित्यिक अंको के संपादकत्व का गणेश गनी ने इस कार्य को एक चुनौती के रूप
में लिया और जिसका परिणाम आपके समक्ष है | गनी
ने अपनी कविता में मिथकों , परम्पराओं ,
जन संवेदनाओं को प्रयोग किया है उन्होंने
इन उपागमो का सामाजिक ढाँचे की यथार्थ संरचना का सही दस्तावेज बना दिया है | ये
कवितायें व्यवस्था विरोधी हैं और काव्य के अभिजात्य मानको का खंडन भी करती हैं |
उनमें उत्तेजना की वह मात्रा नही है जो अक्सर ढूंस दी जाती है उतनी ही मात्रा है
जो जन को आकर्षित करके समय के बदलते तेवरों को व्यंजित कर सके |
इन दिनों
यह हवा
का टुकड़ा
धीरे
धीरे बदल रहा है
हरे
पौधों में
रंग
विरंगी तितलियों में
किताब
के पन्नों में छिपी
रहस्यमयी
कहानियों में
ठहरा
हुआ वक्त
अब पीठ
सीधी कर
फिर से
चलने लगा है
हवा की
नमीआँखों से बह रही है
समुद्र को नमक मिला
और समय
को नमी
किसी
का कर्ज उतर गया
और कोई ऋणी हो गया
हवा और समय का यह सोचना
सरासर गलत हो सकता है |
उनकी कविता में जीवन की उपस्थिति है वर्गीय वर्चस्व मे उलझे हुए
मानव की उपस्थिति है । उनकी कविता में बदलाव ग्रस्त समाज व पारिवारिक मूल्यों में
हुए विघटन से त्रस्त आम जीवन की त्रासद जटिलताओं की गहरी पडताल है। हमारे समय का
यथार्थ भीषण और रुग्ण है इसलिए इसका बोध मानवीयता से विगलित दिखाई देता है गनी की कविताओं का केन्द्र मनुष्य है इसलिए समस्याओं
, अत्याचारों ,जैसे वाजिब सवालों को लेकर उनकी कविता
अमूर्त संवेदन की भावुक परिणिति में जाकर ढह नही जातीं बल्कि इकहरे निष्कर्षों की
स्थापना से बचती हुई आम जन जीवन की वास्तविक कहानी कहने की कोशिश करतीं हैं
वास्तविक कहानी के लिए वास्तविक भाषा का प्रयोग यथार्थ बोध को गति प्रदत्त कर देता
है कविता प्रयुक्त लोकरूढ शब्दों का प्रयोग उन्हे आज भाषागत मिथ्या फैशनपरस्ती से
पृथक करके जनसंवेद कविता की जमीनी रीति से जोड देता है ।
हिमतारु के इस
अंक में किशन श्रीमान का आलेख हिंदी के विकास में पत्रकारिता का योगदान हिंदी
पत्रिकाओं के विकास का संक्षिप्त लेखा जोखा पेश कर देता है | सत्यपाल सहगल ने अपने
आलेख के माध्यम से कविता पर उत्पन्न नए संकटों की बात की है | जयदेव विद्रोही ने
गनी की कविताओं की स्थानीयता को रेखांकित किया है हंसराज भारती ने अपने आलेख में
पहाड़ी जीवन और कविता की आपसी संगति को रेखांकित किया है | राहुल देव और अविनाश
मिश्रा ने गनी जी के व्यक्तित्व और कृतित्व को भली भाँती रेखांकित किया है | सब
कुल मिलाकर हिमतरु का यह अंक गनी जी की महत्वपूर्ण
कविताओं व उनकी कविताओं की विषय वस्तु को समझने के लिए बेहतरीन हैं | पठनीय है |
अच्छी कवितायें पढवाने के लिए गनी भाई और हिमतरु को धन्यवाद |
प्रदुम्न कुमार सिंह
जनवादी
लेखक संघ बाँदा
मो0-९४५०२२८२४४
उमाशंकर परमार भाई आभार आपका मैं तो छोटा सा प्रयास किया है समझाने का
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