शनिवार, 10 जनवरी 2015

शैलेन्द्र शुक्ल की अवधी कवितायें


शैलेन्द्र शुक्ल हिंदी के युवा कवि हैं वो खड़ी बोली के अतिरिक्त अपनी अवधी में भी कविता लिखते हैं उनकी कवितायेँ आक्रोश की युवा मनोदशा को अभिव्यक्त करती हैं |शैलेन्द्र की कविता प्रजातंत्र और उसके आवाम के बीच जिन्दगी के जुड़े तमाम सरोकारों से तय की गयीं हैं दूसरी बात जो उनकी अवधी कविताओं में देखी जा सकती है वह है शब्द चयन और लोक भाषा में उनकी प्रवीणता इन कविताओं में किसी को बडबोलापन दिख सकता है किसी को सपाट बयान भी नज़र आ सकता है पर याद रखना चाहिए की कवि संवाद करना चाहता है उसका संवाद अपने ही गाँव के पाण्डेय जी से है, तो कहीं अपनी ही मिटटी से ,तो कही अपने जैसे युवा मन से ,यदि  कवि की इस संवादी मनोदशा को देखा जाये तो कवि में सपाट बयान की जगह आत्मविश्वास झलकने लगता है एक जनचेता  कवि की यही पहचान होती है की उसकी कविता आवाम के साथ कितना संवाद कर सकती है शलेन्द्र की ये तीनो कवितायें संवाद कर सकती हैं क्यूंकि इनकी भाषा ,भंगिमा , और शिल्प तीनो स्तरों में एक जमीनी सम्होहन ही दिखाई देता है |आज लोकविमर्श में हम युवा कवि शालेंद्र की अवधी कविताओं को पढेंगें जिसे उन्होंने खासकर लोकविमर्श के लिए भेजा है    




शैलेन्द्र शुक्ल की अवधी कवितायें

पांडे जी
बड़का बा पर छोट बनत बा
का घोटत बा पांड़े जी
एहर के बतिया ओहर करति बा
खोंट बनत बा पांड़े जी
अंट-संट अब न बतियावा
मन समझवा  पांड़े जी
जिनगी त झुट्ठई बतियावा
साँच त बोला पांड़े जी
कुंठा की जो गांठ बनउले
बड़ घातक बा पांड़े जी
जियइ न देई, मरइ न देई
कइसे तरिहा पांड़े जी
अपने मन मा कुछ त सोंचा
का हउआ हो पांड़े जी !

                                    -शैलेन्द्र कुमार शुक्ल
सच्चाई कुछ तउ औउर आहि

भूंखी आंतन की होरी पर, तुमरे घर रोजु देवारी हैं
तुमरी गद्दर मुसुकिन मइहाँ, हमारे आंसुन की लारी हैं
भगवानउ तुमरे कहे आहि, हमारे दुख उनका न देखाइं
अंगरेजी की गिटपिटि आगे, ना भाखा उनका है सोहाइ
अब जेठु परेवा दूरी धरउ, अप्रेल फूलु का यहु जुगु है
पूंजीवादिन की झोरिन मा, सबु खूनु पसीना हमरइ है
हम जानिति है हम मानिति है
हम देखित औउर देखाइत है
                     सच्चाई कुछु तउ औउर अहि ।

सरकारइ बिगरि-बिगरि बनती, वाटन पर वाटइ परती हैं
यहि जद्दी का पवाइ बदि के, जब सबइ लड़ाई होती हैं
तब जाति व्यवस्था क्यार ठुंठु, तुम खोदि-खोदि सुलगावति हउ
तुम याक कौर के लालच ते, कुत्ता अस खूब लड़ावति हउ
कब लगे अंधेरे मा रखिहउ, तुम प्रजातन्त्र के च्वांगा का
दिन दुपहर राजतंत्र भ्वागव, अब परदा फ़्यांकौ घोंघा का
यह सही बात है असली है
असिलांती देति है कवि तुमका
                        सच्चाई कुछु तउ औउर अहि ।

तुम जानति हुइहौ देसभक्त, तुम मनति हुइहौ राजभक्ति
लेकिन आंखिन ते जब देखिहउ, येइ सागरी बातइ झूठी हैं
अवधेस के बालक की लीला, लंका मा बनार लड़इ मरइं
सीता का भए अपरबल दुख, लेकिन येइ बातइ झूठी हैं
येइ झूठी कही अनूठी हैं
तुम सांचु-सांचु तनी बोलि देउ
                       सच्चाई कुछु तउ औउर अहि ।

दुइ रोटिन क्यार जमाना है जबाना है, बाकी सब पूंजीपतिन क्यार
तुमरी बदि वहइ सजीवनि है, लंदन अमरीका कि जूठ ब्यार
तुम बने रहेउ चालाक खूब, तुम कउवा अइस कुचाली हउ
तुम जानति हुइहौ उजर-बीजर, तुन अपलिछिन के माली हउ
मरजाद अपनि तुम मेटि रहेउ, इज्जति मा नई संसकिरति
मनई का मनई छाड़ि दिहिसि, अब पूजई लाग अलग मूरति
तुम खीसन काइहाँ खुसी कहउ
तुम झुठई सांचु मानि लिन्हेउ
                         सच्चाई कुछु तउ औउर अहि ।

यहि पुलिस मलेटरी मा ककुआ, तुमरइ लरिका, प्वाता, नाती
बूटइ पहिरे अब गाँजति हैं, हमरी, तुमरी ,अपनी छाती
दुइ रोटिन बदिके बेची देहेउ, ईमानु, धरमु, औ इज्जति का
छेगरी-बोकरा अस काटती हउ, मरतुलहा औउर गरीबन का
तुमरी बहिनी बिटियन काइहाँ, सरकारन के भड़ुआ भ्वौगइं
चचुआ तुमरे घरवालेन का, दुइ-दुइ पैसाकि नेतवा प्वौंगइं
अब जानि लेहेउ ददुआ होरेउ
दादी, नानी, काकी, भौजी                  
                       सच्चाई कुछु तउ औउर अहि ।
हम फूंकि द्याब दुनियकि बलाइ

हम गाँउ घरन के लरिका हन
हम जानिति केतने पानि म हैँ
हम सहरू देखि के आयेन है
हम जानिति केतने दानी है
दानिन मा पानी नाइ बूँद
हम यहउ बतइब दुनिया ते
तुमरी चंटइ कि गगरी का 
हम फेँकि द्याब ऊँचे पर ते
कोने अँतरउ मा दिया बारि
हम फूँकि दैब दुनियकि बलाइ ।।

करिया अच्छर हम भइँस नाइ
हमहुँ एमफिल पीएचडी हन
हम जानति हइ तुमहूँ का हउ
हम जानिति हइ हमहूँ का हन
हमरे हत्थे जब चड़ि जइहौ
तब आँखिन ते लागी देखाई
ऊँचि बातन की दूरि धरउ
तुमका सनकउ लागी सुनाइ
यह नाइ जवाहिर की खेती 
हम भूँकि दैब दुनियकि बलाय ।।

हमरिहु दियारिन मा बाती
हमरी देरिन मा तेलु आहि
हमरी मेहनति मा आगी है
सबु तुमहूँ का लागी देखाइ
तुमरी अक्किलि ते देसु चला
यहु अबहीँ लौ भरि पाये हन
मनइन की छाड़उ औरि बात
हम लरिकन लहु ते गायेन हइ
अब खूनु पसीना मिलि जाई
हम फूँकि दैब दुनियकि बलाइ ।।

शैलेन्द्र कुमार शुक्ल
जन्म- 01 जुलाई 1986 (उत्तर प्रदेश के जनपद सीतापुर में गाँव साहब नगर)
शिक्षा- प्राथमिक शिक्षा गाँव के सरकारी स्कूल से तथा उच्च शिक्षा लखनऊ, बनारस, हैदराबाद,और वर्धा        
      के विश्वविद्यालयों से ।
प्रकाशन- बया’, वागर्थ’, संवेद’, जनपथऔर परिचयआदि पत्रिकाओं में कुछ कवितायें प्रकाशित ।
संप्रति- शोधरत(पीएच.डी.), महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय वर्धा ,महाराष्ट्र

                                                                                     






                                                                  

6 टिप्‍पणियां:

  1. अवधि में काम कर रहे है, यह बडी बात है।

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  2. बहुत अच्छी लगीं आपकी कविताएँ शैलेन्द्र! विशेष रूप से पहली कविता।

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    1. धन्यवाद दादा ,आप की प्रतिक्रिया मेरे लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है !

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  3. भाई शैलेंदर सुकुल बढ़िया लिखि रह्यो है अवधी मा -
    तुम लिखति रहौ हम पढ़ति रही
    बस अवधी आगे बढ़ति रही
    थून्ही पकराय देव वहिका
    वह उपरै ऊपर चढ़ति रही
    - प्रदीप

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