मंगलवार, 13 जनवरी 2015

      नितीश मिश्रा की कवितायें

नितीश मिश्र एक संवेदनशील कवि हैं उनकी कवितायेँ यथार्थ में किसी भी प्रकार का संकोचन अस्वीकार करती हैं प्रतीकों द्वारा, बिम्बों द्वारा सृजित संकेतात्मक मूर्तन अवरोधात्मक पहलू को काटकर चलते हैं यही कारण है कलावाद को स्वीकार करते हुए भी उनकी कवितायें कलावाद को अस्वीकार भी करती हैं |अपनी प्रेम कविताओं में वो एक अजीब सी घुटन के साथ यथार्थ से गुजरते हैं इन प्रेम कविताओं में प्रतिद्वंदी व्यवस्था ही नहीं  होती वो स्वयम  को पुरुष सत्ता से जोड़कर प्रतिद्वंदी बना लेते हैं |लेकिन सामान्य रूप में उनकी कवितायें परिवेश के प्रति अकुलाहट व आलोचन ही हैं |धर्मो जातियों पंथों में विभाजित जनता के आपसी द्वंदों ,संघर्षों ,और इसके मूल में विद्यमान पूंजीवादी कारणों की वो तीखी आलोचना करते हैं सामाजिक विभेदों से उत्पन्न असमानता का प्रतिरोध उनकी कविताओं को ताज़ा बना देता है इसी अकुलाहट ,बेचैनी , व्याकुलता , टूटन के के कारण वो युवा कवियों की जमात से अलग दिखतें हैं आज हम लोकविमर्श में साथी नितीश मिश्रा की कुछ कवितायें प्रकाशित कर रहे |तो आइये आज पढ़ते हैं नितीश मिश्रा की कवितायें साथी प्रदुम्न सिंह की टीप के साथ  


नितीश मिश्रा की कवितायें
मैंने खुदा को देखा हैं
मैंने खुदा को देखा हैं,
कभी रोटी बेलते हुए 
कभी रोटी सेकते हुए 
कभी हल -बैल के साथ दौड़ते हुए,

मैंने खुदा को देखा हैं 
सर पर थोड़ा सा धूप लिए 
और माटी में अपनी खोयी हुई 
तक़दीर को खोजते हुए।

मैंने खुदा को देखा हैं 
कभी प्यासें ओठं लिए 
आँखों से पानी खोजते हुए 

मैंने कल ही खुदा को देखा हैं 
थोड़ा सा थके हुए 
कुछ कमर से झुके हुए 
अपने बच्चों के लिए 
तालीम से रंगा हुआ एक रास्ता बनाते हुए 

मैंने खुदा को देखा हैं 
मस्जिद से दूर 
पत्थर की शिलाओं पर 
 कुरान की आयतों को तराशते हुए 

हाँ!मैंने कल ही खुदा को देखा हैं 
साहूकार से कर्ज़ लेकर 
अपनी लड़की के लिए दहेज़ जुटाते हुए 
हाँ मैंने खुदा को देखा हैं
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एक लड़की के लिए प्रेमपत्र
एक लड़की के लिए प्रेमपत्र 
धरती के टुकड़े के बराबर होता हैं 
और लड़की प्रेमपत्र की आँच में 
बनाने लगती हैं एक ऐसी दुनिया 
जो यथार्थ से भी खुबसूरत होती हैं 
जब लड़की प्रेमपत्र पढ़ती हैं 
तभी वह लिखने लगती हैं 
अपनी मुक्ति की गीत 

एक लड़की के लिए प्रेमपत्र 
उसके समय का सबसे बड़ा सच होता हैं 
प्रेमपत्र की आवाज से 
लड़की इतिहास को भूलती हुई 
वर्तमान को अपनी हँसी से पकड़ी रहती हैं 
और एक समय के बाद प्रेमपत्र 
हथियार बन जाता हैं 
और लड़की गढ़ लेती हैं 
अपने लिए एक भाषा 
जिससे अपनी मुक्ति की कहानी लिख सके 

एक लड़की के लिए प्रेमपत्र 
किसी देवता से कम नहीं होता हैं 
वह प्रेमपत्र को बचा कर रखती हैं 
इस उम्मीद से की 
मौत के वक्त भी यह प्रेमपत्र उसके 
साथ ही जायेगा .............

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देवदारु की कहानी
संयोगवश या 
संघर्ष करते हुए 
देवदारू का पेड़ 
पहाड़ से या अपनी 
बिरादरी से अलग होकर 
मैदान में ......
एक अछूत की तरह 
खड़ा भर था,

बिरादरी से या जाति से 
अलग होना 
मनुष्यों के लिए 
किसी कोढ़ से कम नहीं था।
जब भी कोई कारवां गुजरता 
देवदारु के लिए 
किसी गाली से कम नहीं था 
गाँव में यह खबर 
कुत्ते की आवाज की तरह फ़ैल गयी 
एक अपशगुन पेड़ 
गाँव में जवान हो रहा हैं ..........

जवानी में स्नेह अगर 
चाँद को भी नहीं मिलता 
तब उसमे भी शायद इतनी 
चाँदनी नहीं होती 
लेकिन देवदारु का संघर्ष 
किसी भी हीरे से कम नहीं था,
देवदारु:समूह से उपेक्षित होकर 
इस कदर मौन हो गया कि 
अपने सौन्दर्य को ही भूल गया,
प्रत्येक साधना की,
हर संघर्ष की 
अपनी एक सीमा होती हैं 
क्योकि धरती भी कहीं न कहीं 
सीमित ही होती हैं .............


गाँव:में ही एक लड़की थी 
जो वर्षों से कुछ खोजते हुए 
अपने आप से उब चुकी थी 
या थक चुकी थी 
और इस कदर थक चुकी थी कि 
लड़की होने के अपराध को भी भूल चुकी थी,

एक रात :जब सब जाग रहे थे 
और सभी सो भी रहे थे 
लड़की को समय मिल गया कि 
वह देवदारु को देख सकें 
ज्योहीं उसकी नजर की किरण 
पेड़ पर गिरती हैं 
देवदारु जाग जाता हैं 
और बहने लगता हैं 
लड़की के अन्दर स्वरों के 
कई सारे दीये जलने लगते हैं,

लड़की:को लगता हैं कि 
यही उसकी खोयी हुई 
अभिव्यक्ति हैं 
या कोई पायी हुई पानी की धार हैं 
देवदारु:भी भोर तक 
यही सोच रहा था 
क्या जब आँखों में कोई चेहरा 
अपना होता हैं?
तभी जीवन की मुक्ति 
यात्रा शुरू होती हैं .............

सुबह की पहली किरण 
ज्योही धरती के जिस्म से टकराती हैं,
मैदान की उर्वर मिटटी में 
प्रेम का बीज आँख खोलता हैं,
जब प्रेम के लिए कोई जागता हैं 
तब सबसे पहले वह 
अपने हिस्से का समय चुराता हैं 
दोनों जब समय दान करके रिक्त हो जाते हैं 

देवदारु:लड़की से एक दिन 
महादान माँगता हैं 
और लड़की शीत सी 
उसकी जड़ों में ठहर जाती हैं 
लड़की सुबह -सुबह एक दीया जलाकर 
पेड़ के नीचे बैठ जाती हैं 
देवदारु लड़की को अपनी 
छाया से रंगकर 
उसके स्वर में एक राग भरता हैं 
और ऐसे ही वे मुक्ति का 
इंद्रधनुष खीचतें हैं ................

एक दिन लड़की देवदारु की जड़ों में 
समाधिस्थ होकर कहने लगी 
मैं:रोज --रोज नहीं आऊँगी मिलने 
अब"तुम मुझे एक वृत्त में रखों"
ज्योही जीवन में प्रश्न उपस्थित होता हैं 
अस्तित्व को हमेशा अर्थ मिलता हैं 
क्योकि प्रश्न सजीव होते हैं ............

देवदारु:एक बार आकाश को देखता हैं 
और एक बार हिमशिखर को 
लड़की को जड़ों से उठाकर 
प्राणों के समीप खींचता हैं 
और शम्भू से कहता हैं कि 
केवल तुम ही नहीं अर्धनारीश्वर नहीं हों 
इतने में गाँव में 
धूप की तरह 
यह खबर फ़ैल गयी कि 
देवदारु का पेड़ गिर गया 
और लड़की दब कर मर गयी 
गाँव पुरा खुश हुआ 
और कहने लगे लोग 
चलो!बला तो टली 

पर लड़की और देवदारु बहुत खुश हैं 
क्योकि अपनी प्यार की आत्मकथा को 
बस वे ही जानते हैं ...............
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कब्रिस्तान में हिजड़े
कब्रिस्तान /श्मशान जैसी
चौथी दुनियां को
मैं,लगातार देख रहा हूँ
और दावे के साथ कहता हूँ
पुनर्जन्म होता हैं
लेकिन हुलिया कभी नहीं बदलता हैं।

कब्रिस्तान में
सबसे अलग तरह की कब्र
हिजड़ों की होती हैं
क्योकि धरती पर
उनका जीवन भी
बहुत ही अलग तरह का होता हैं
शरीर में भी दो गुण
और आत्माओं में भी दो गुण
पर उनके दुखों में कोई गुण नहीं होता ।

कब्रिस्तान में भी
वे अशिक्षित और बेरोजगार हैं
जैसे --धरती पर
उनके पास कोई सुविधा नहीं थी
ठीक वैसे ही
कब्रिस्तान में भी
वे सुविधावों से वंचित हैं

कब्रिस्तान में भी
जातिवाद /पूंजीवाद का बोलबाला हैं
वहां भी उसी का चलता हैं
जिसकी धरती पर तूती बोलती थी

हिजड़ों की आत्माओं को नहीं मालूम हैं
भाई /बहन का क्या मतलब होता हैं
उन्हें ये भी नहीं मालूम हैं कि
गाँधी कब पैदा हुए थे
या अपना देश कब गुलाम हुआ था


उनकी आत्माएं बस
दिल्ली को पहचानती हैं
क्योकि दिल्ली ही
एक ऐसी जगह हैं
जो चौथी दुनियां में भी
अपना दखल रखती हैं
उनकी निगाह में दिल्ली
ईस्वर /यमराज दोनों हैं ।

मेरा दावा बिल्कुल सही हैं
पुनर्जन्म में
रूप /लिंग और सत्ते का परिवर्तन
बिल्कुल ही नहीं होता
क्योकि चौथी दुनियाँ की
रिपोर्ट मेरे पास हैं । ।
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प्रेमपत्र की आवाज
आओं चले 
और बनाए 
प्रेमपत्र की 
कुछ रंग बिरंगी 
पतंगे 
और उड़ा दे आकाश में 
ताकि सब पढ़ सके .......

या प्रेमपत्र में लिखे हुए शब्द को 
भर दे किसी बांसुरी में 
जिससे प्रेमपत्र की आवाज सब सुन सके 

या प्रेमपत्र को बना सके एक दीया 
जिससे सब अंधेरें में पा सकें अपना प्रेम 

या अपने प्रेमपत्र को बना दे एक आईना 
जहाँ सभी अपने चेहरे पर लिखे हुए 
शब्द को पढ़ सके .........
या प्रेमपत्र को कपास के साथ धुन कर 
बना सके कोई कपड़ा ......
जिसे पहन कर आदमी कम से कम एक बार प्यार कर सके 
या प्रेमपत्र को बना दे कोई मंत्र 
जिसे पढ़कर लोग मुक्त हो सके ...........
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एक पागल जब भी
अपने प्यार के बारे में
बात करता हैं
सागर की तरह खुश होकर
सब कुछ खोलकर रख देता हैं

अपने प्यार को याद करते हुए
वह सूरज से भी सुन्दर दिखने लगता हैं
जबकि उसके पास नहीं हैं कोई प्रेमपत्र
यदि कुछ हैं उसके पास
जो भरोसे के लायक हैं तो
....
उसकी प्रेमिका का नाम
जो अभी भी
उसके ओंठों पर अंकित हैं
अगर वह नहीं भी बताये तो
भी उसके ओंठों को पढ़कर
जाना जा सकता हैं कि
क्या रहा होगा उसकी प्रेमिका का नाम ?


उसे ख़ुशी हैं की
वह नहीं बना सका
प्यार के छोटे ---छोटे ताजमहल

वह अपने प्यार में
अगर कुछ बना सका तो
थोड़ी बहुत कविता
और कुछ गीत
और कुछ हद्द तक अपने
चेहरे पर न मिटने वाली एक हंसी

आज पागल को यह भी नहीं याद हैं कि
वह कहाँ रहती थी
और कहाँ अंत में चली गयी
ऐसे प्रश्नों का उत्तर नहीं हैं उसके पास

बस अगर कुछ हैं उसके पास तो
सिर्फ कुछ शब्द हैं
जिसका आसरा लेकर कहता हैं कि
वह बारिश से भी खुबसूरत थी
और भूख से भी ज्यादा मुलायम थी

एक पागल आज खुश हैं
क्योकि वह अपनी जिंदगी में
सबसे सही काम किया हैं
किसी से प्यार करके

पागल कहता हैं
क्या हुआ मैंने नहीं बनाया अपने लिए कोई घर
या नहीं देख पाया प्यार के अलावा कोई दूसरा सपना

नहीं गया तीर्थ करने

लेकिन प्यार करने के लिए जरूर
कई बार धरती के चक्कर लगाया ।


एक पागल आज खुश हैं
यह सोचकर की
धरती पर आकर उसने
एक सबसे अच्छा काम किया
किसी से प्यार कर के
===========================
तुम्हारे जाने के बाद
कुछ भी फर्क़ नहीं पड़ा
नाखूनों का बढ़ना उसी तरह जारी रहा
और बालों का हवा में उड़ना भी
शाम का सूरज
जब चला जाता था
झाड़ियों में किसी से मिलने
अपने ही घर में
डर की बारिश में भींगता रहा देर तक
मेरी आत्मा में ही
सूर्यग्रहण होना शुरू हो गया ।

तुम्हारे जाने के बाद
पेट में पहले की तरह ही
एक गुदगुदी होती थी
तुम्हारे जाने के बाद
आँखों में नींद नहीं आती हैं रात भर
क्योकि आँखों ने
सजा के रखा हैं
तुम्हारे बहुत सारे सामान को ।
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तबाही के बाद ...
मंदिर का शेष होना
यह गवाही देता हैं कि
ईश्वर असमर्थ होता हैं
आदमियों की रक्षा कर पाने में ......
अब जो लोग बच गए
क्या वे मानेगें की
ईश्वर भी आदमखोर होता हैं ......
लेकिन नहीं ऐसा नहीं होगा
पंडित फिर रामायण लिखेगा
और कहेगा कि क़यामत में कुछ बचता हैं तो सिर्फ ईश्वर
और लोगों को दिखायेगा साक्ष्य मंदिर के बचे रहने का .....
और लोग फिर जायेंगें केदारनाथ ....
जबकि मैं बार --बार कहता हूँ
वहां कोई ईश्वर नहीं हैं
एक स्त्री -पुरुष का प्रेम हैं ....
जो हंसीं वादियों में एकांत में बैठकर
वर्षों से कर रहे हैं प्यार .......
अगर मेरी बात पर यकीं ना हो देख लीजिये तबाही के बाद का मंजर
कोई स्त्री पड़ी हुई मिल जाएगी अपने प्रेमी के बांहों में
और कोई बच्चा मिल जायेगा अपनी माँ की बांहों में ..
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बाढ़ आई ....
और सब कुछ
ख़त्म हो गया .....
ख़त्म हो गयी
आदमी के अन्दर की साम्प्रदायिकता ..
नहीं रहा कोई दलित अब ...
नहीं रही कोई स्त्री
जिसके साथ कोई बलात्कार कर सके .....
ख़त्म हो गयी
आदमी की राजनीति ......
बस कुछ शेष रह गया हैं
आदमी के अन्दर तो
एक प्यार
जो एक दीये की तरह टिमटिमा रहा हैं
लोगों की आँखों में
कभी लोगों की साँसों में ......
===================

NITISH MISHRA
(sub. Editor )
Madhya Pradesh Today Media Pvt. Ltd.
Balarao Engle Parisar,MTH Compound, Indore (MP)
Mobile : +91 8889151029.


3 टिप्‍पणियां:

  1. नीतीश मिश्र की कविताएं आज के तकनीकी दौर में स्मृति के सहारे जीये गये जीवन का वह आख्यान है जो मनुष्यता के विस्तार की कहानी को सामने रखता है | मूल्यवान संदर्भ की ये बड़ी कविताएं जरूर कविता के इतिहास व भूगोल में कुछ नया जोड़ेंगी |
    विवेक

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  2. नीतीश मिश्र की कविताएं आज के तकनीकी दौर में स्मृति के सहारे जीये गये जीवन का वह आख्यान है जो मनुष्यता के विस्तार की कहानी को सामने रखता है | मूल्यवान संदर्भ की ये बड़ी कविताएं जरूर कविता के इतिहास व भूगोल में कुछ नया जोड़ेंगी |
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  3. नीतीश मिश्र की कविताएं आज के तकनीकी दौर में स्मृति के सहारे जीये गये जीवन का वह आख्यान है जो मनुष्यता के विस्तार की कहानी को सामने रखता है | मूल्यवान संदर्भ की ये बड़ी कविताएं जरूर कविता के इतिहास व भूगोल में कुछ नया जोड़ेंगी |
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