गुरुवार, 5 नवंबर 2015


“प्रकृति व मानव के बहाने जीवन उकेरते चित्रकार : कुंवर रवीन्द्र
               


कुंवर रवींद्र के चित्र एक लोकतांत्रिक समाज की मांग करतें है जिसमे व्यक्ति को दबाने वाली तमाम सामंती बन्धनों से मुक्ति की कामना है | व्यक्ति की अस्मिता का सवाल इनकी कला में बार बार उभर कर आता है इस सवाल की रंगमयी तल्खी से सरोबोर रवींद्र के चित्र मानवता का पक्ष में सुचिंतित प्रतिरोध का सृज़न करते प्रतीत होते हैं | लोकविमर्श में कुँवर रवीन्द्र के चित्रों पर चल रही बहस मे हस्तक्षेप करते हुए युवा कवियित्री सरस्वती मिश्र ने अपना आलेख भेजा है । जिसे आज हम लोकविमर्श मे प्रकाशित कर रहे हैं । सरस्वती चित्रों में अन्तर्ग्रथित सूत्रों की पहचान करने में यथार्थ  मानवीय जीवन के कठोर व कोमल अनुभवों को तरजीह देती हैं ।  चित्रों पर आधारित उनकी कुछ कविताएं मेरे पास हैं जिनमे रचना की पुनर्चना देखी जा सकती है । पहली बार उन्होने अपनी इस प्रविधि को आलेख का आधार दिया है । सरस्वती मिश्र मे चित्र मूल्यांकन की पर्याप्त सम्भावनाएं हैं हम आगे भी उनसे इस तरह के रचनात्मक सहयोग की अपेक्षा करेगें | तो आइये पढतें है 








  कुंवर रवीन्द्र के रचना संसार का फलक अत्यंत व्यापक है | वे एक कुशल चित्रकार के साथ ही एक सजग कवि भी हैं | कुंवर रवींद्र कैनवास के विशाल स्पेस में स्वयं अपना रंग तलाशती रंगतों के चित्रकार हैं | वे अपने चित्रों में उपस्थित प्रकृति, मानव व चिड़िया इनके चित्रों को एक अलग ही व्यक्तित्व देते हैं | अपने सभी चित्रों में कुंवर रवींद्र पर्याप्त काव्यात्मक और संवेदनपूर्ण बने रहने में सफल रहे हैं | रंगों व रेखाओ की सक्रिय उपस्थिति से वे रूपाकारों के भीतर उपस्थित रहने वाली छोटी, किन्तु बारीक व सक्रिय संवेदनाओं को भी खोलते हैं | इनके रूपाकार मनुष्यत्व के अंदरूनी संवेगों को टटोलते दिखाई पड़ते हैं | कुंवर रवींद्र ने अनगिनत कविताओं को अपने रंगों के सुन्दर व सहज समायोजन से कविता पोस्टर का रूप दिया है | इन कविता पोस्टरों में उनके रंगों व रेखाओं का सटीक इस्तेमाल कविताओं को और भी सम्प्रेषणीय बना देता है |
                                                                                                               
     

कुंवर रवींद्र के कविता पोस्टर शब्दों व रंगों के अद्भुत तालमेल से उत्पन्न एक नए अर्थ को व्यंजित करते हैं | इस कविता चित्र में धूसर रंग के साथ हरे व नारंगी रंग के समायोजन से समय के बदलाव को दर्शाया है |
              
                                                                                 
      आसमान में उड़ान भरती चिड़िया सर्वहारा वर्ग की आशाओं के प्रतीक-रूप में आई है | यह चिड़िया समाज के शोषित वर्ग की उम्मीदों का प्रतीक है जो सारी विवशताएँ तोड़ दूर गगन में उड़ान भरने को आतुर है |
                  
                                             

      कत्थई रंग की पृष्ठभूमि पर नीले रंग से बनी नृत्यांगना की यह आकृति उसकी नृत्य-भंगिमा में एक प्रकार की आशा को अभिव्यक्त कर रही है | ऊपर की ओर उठा हाथ और उन्मुक्त उँगलियाँ नारी  की मुक्ति की घोषणा कर रही है |
                   
                                            
      इस चित्र में रस्सियों से जकड़े व्यक्ति की भंगिमा में एक उम्मीद दिखाई पड़ रही है | चेहरे का मटमैला रंग मेहनतकश जमीनी आदमी का प्रतीक है | जंजीरों में जकड़ा ये चेहरा ऊपर की ओर देख रहा है मानो व्यवस्था की उत्पीड़क जकड़न से मुक्त होकर बदलाव का स्वप्न देख रहा हो |
               
                                
      सिलेटी पृष्ठभूमि पर बना घर का दरवाजा, ऊपर की ओर जाकर ख़त्म होती सीढियां और मनुष्य का चेहरा सामाजिक विसंगतियों का प्रतीक बनकर इस चित्र में आये हैं | इस चित्र में रंगतों का सधा हुआ आलेप इसकी प्रभावशीलता को बढ़ा रहा है |
                 
                                              
      सफ़ेद, नारंगी व नीले रंग के शालीन प्रयोग वाले इस चित्र में दिखता आधा चाँद अंधेरों में भी चिंगारी या चेतना का प्रतीक बनकर आया है | मनुष्य की उम्मीद के रूप में नीले रंग की चिड़िया इस चित्र में भी उपस्थित है | आकाश में उडती चिड़िया मनुष्य में नित्यप्रति उत्पन्न होने वाली आशा जैसी है जो दिनभर खटने के बाद रात में देखे मीठे सपनों में उड़ाने भरती है | मेहनतकश व्यक्ति में संचित आशा ही उसके जीवन का आधार होती है जिसके सहारे वह अपना पूरा जीवन गुजार लेता है |
                   
                            
      इस चित्र में स्वरक्षा की मुद्रा में खड़ी स्त्री वस्तुतः आदिवासी चेतना का प्रतीक है| उसके शरीर का मिटटी जैसा रंग उसके धरती से सीधे जुड़े होने की अभिव्यक्ति कर रहा है | बालों में लगा फूल जहाँ उसकी कोमलता व सौन्दर्य को प्रकट कर रहा है वहीँ दूसरी ओर मुखमुद्रा व हाथ में लिया हथियार उसकी दृढ़ता व शक्ति को व्यंजित कर रहा है |
                  
                                             
      कुंवर रवींद्र अकसर नीले रंग की पृष्ठभूमि में हरे रंग से चित्र उकेरते हैं | नीला रंग शोषित व सर्वहारा वर्ग का प्रतीक बन कर उनके चित्रों में आता है | इस चित्र में नीली पृष्ठभूमि में हरे रंग की पट्टियां हैं | यह हरा रंग समाजवाद व लोकचेतना का प्रतीक है | समाज की इस बुनावट में अटका व्यक्ति पीले रंग की चिड़िया से संवाद सा करता प्रतीत हो रहा है मानो पूछ रहा हो कि जमीन के दबे कुचले वर्ग को कब समाज की मुख्यधारा में स्थान मिलेगा |
             
                                                  
      हरे रंग की चमकदार पृष्ठभूमि में बैठा यह आदमी ऊपर की ओर देख रहा है | चित्र में चिड़िया व आदमी एक दूसरे से कुछ कहते हुए से प्रतीत हो रहे हैं | आदमी के चेहरे पर दो रंगों का इस्तेमाल है जो उसके दोहरे चरित्र को दर्शा रहा है |
                                               


      आज के समय का यथार्थ उनके चित्रों व कविता का विषय है | इस चित्र में एक चेहरे में दो चेहरे दिखाई दे रहे हैं | विकृत चेहरा आज के खतरनाक समय में गायब होती जा रही मनुष्यता का प्रतीक है | दूसरा चेहरा आज के मनुष्य के चेहरे पर चढ़े नकली चेहरे जैसा प्रतीत हो रहा है |
      सामाजिक उत्थान और नारी स्वतंत्रता से सम्बंधित उनके विचारों में दृढ़ता और विकास का अद्भुत सामंजस्य मिलता है | सामाजिक जीवन की गहरी परतो को भेदती इतनी तीव्र दृष्टि, नारी-जीवन की विषमताओं व शोषण को व्यक्त करते चित्रों में ब्लेड सा तीखापन और निम्नवर्गीय निरीह व साधनहीन मनुष्यों के अनूठे अंकन इनके चित्रों की ख़ास विशेषतायें है |
      लगातार काम करने वाले वर्तमान चित्रकारों में कुंवर रवींद्र एक प्रतिष्ठित कलाकार के रूप में हमारी अभिशंसा के अधिकारी हैं और हम उनकी कृतियों में हर नए रचना-पडाव के प्रति आशान्वित | 

  सरस्वती मिश्र युवा कवियित्री और लेखिका हैं विभिन्न पत्रिकाओं में इनकी कवितायें छपती रहती है 

3 टिप्‍पणियां:

  1. सरस्वती मिश्र का प्रयास वाकई सराहनीय हैं ।। उन्होंने रविन्द्र जी के चित्रों को सटीक शब्दों की माला में पिरोया है ।। लोकविमर्श से मैं सहमत हूँ कि उनमे अपार संभावनाएं है और ऐसी उभरती लेखिका को संवारने का काम लोक विमर्श अच्छे से कर रहा है ।। उसके प्रयास के लिए साधुवाद ।।

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  2. Ravindra ji chtrakala aur kavita dono me hi apni abhivaktiya dete hain, Jo ki kam hi dekhne ko milta hai. Sath hi saraswati ji ne unki kavitao ko jis tarah vishleshit kiya us se ye to kahi se nahi lagta ki ye "chitrakaar" Nahi hain. Bahut achchha prayaas.

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