राजकुमार राकेश
ने अपनी “कला” का सौंदर्य “विरोध और संघर्ष” में खोजा है |यह हिंदी की एक बड़ी उपलब्धि है |वास्तव में सुन्दर वही होता है जो
सच होता है ,संघर्ष ही हमारे समाज का सच है अत: संघर्ष ही सुन्दर है |यह संघर्ष ही
प्रकति के विकास का चेतन कारक है|जीवन यात्रा की मुख्य गति है ,जो लेखक इस संघर्ष
को दरकिनार करता है वह सफल कलाकार नहीं हो सकता है |एक सफल कलाकार वही है जो तमाम
संघर्षों के बीच “संतुलन” की खोज करता है |राजकुमार राकेश का पूरा साहित्य संघर्ष
और संतुलन के खोज की कलात्मक उपलब्धि है |परस्पर विरोधी तत्वों के संघर्ष का तार्किक समन्वय है यदि जीवन की विडम्बनाओं
में मनुष्यता की गहन पड़ताल करना है तो राजकुमार राकेश से बेहतर कोई दूसरा लेखक
नहीं है | (इसी समीक्षा से) प्रदुम्न कुमार सिंह बाँदा जनवादी लेखक संघ के सक्रिय
कार्यकर्ता हैं उन्होंने राजकुमार राकेश जी का कहानी संग्रह पढने बाद हर एक कहानी
पर छोटी-छोटी टिप्पणी लिखी मैं उन टिप्पणियों को आज लोकविमर्श में प्रकाशित कर रहा
हूँ आइये आप भी पढ़िए
एक समीक्षा साऊथ ब्लाक में गाँधी
प्रद्युम्न सिंह
साऊथ ब्लाक में गाँधी सत्रह
कहानियों का अद्भुत संगम है, जो एक दूसरे से इस प्रकार से गुथी गयी है, जैसे माला में पिरोये गए मोती हो जिनमें से
यदि एक भी मनका टूट जाय तो पूरी माला टूटकर बिखर जाएगी |कहानी संग्रह में सत्रह
कहानियों का अद्भुत संगम है |कहानी संग्रह का प्रारंभ दिल्ली दरवाजा,मृतकल्पना का
शोकगीत से आगे साउथ ब्लाक में गाँधी और याकि पञ्च हाथों वाली औरत से होता हुआ
अदृश्य अवतार वा भटकती आत्माएं ई फार्मिंग के दिनों में प्यार और तथास्तु जैसी
कहानियो में अपनें उत्स की ओर अग्रसर होती है | इसी के साथ समकालीन जीवन के इतिहास
बोध अँधेरे में सचेत कराती रात्रि के पहरेदार की तरह आहट देते चलती है |
लेखक राजकुमार राकेश
की कहानियों में मध्यम वर्ग की पीड़ा जो प्रत्येक अवस्था में अपने को संघर्ष के
निमित्त तैयार करती नज़र आती है |जैसा की उनकी प्रथम कहानी दिल्ली दरवाजा का
अमीनुद्दीन अंसारी अपनी पूरी पीढ़ी से संघर्ष करता दिखाई देता है |अपने परिवार के
द्वारा दिए गए परिवेश के सारे बन्धनों को नेस्तनाबूत कर अपना अलग मार्ग चुनता है
जो कष्ट साध्य है किन्तु रास्ते से कभी भी विचलित होता दिखाई नहीं देता | अक्सर
लोग रिश्तों के मायाजल में उलझकर रह जाते हैं किन्तु अमीनुद्दीन इससे अछूता दिखाई
देता है |इस कहानी को लेखक कहानी की तरह न प्रस्तुत का नाटक की तरह पेश करते नजर
आता है किन्तु कहीं भी कहानी अपनी मौलिकता नहीं खोती |प्रत्येक दृश्य एक दूसरे के
विकास में सहायक की तरह पेश होते हैं जो कहानी की त्वरिता एवं मौलिकता को बरकार रखते हैं |कहानी लम्बी
होने बाद भी अपनी लयबद्धता को संजोये हुए दिखती है |कहानी के नायक द्वारा पुत्र-पुत्रवधू
की अनैतिक अपेक्षाओं को बिना किसी लाग लगाव के नजरअंदाज कर देना आज के समाज में
फैले भाई भतीजावाद,वंशवाद, जातिवाद ,धर्मवाद की घिनौनी राजनीति करने वालो के मुंह पर
करारा तमाचा है | जो इन बोझिल रिस्तों के बोझ में दबकर अपना जमीर बेंचने को हर
वक्त तैयार दीखते हैं |अमीनुद्दीन पूंजीवाद के फौलादी साम्राज्य से टकराने की चाहत
लिए हुए पूंजीवाद का समर्थन देने वाले हिन्दू जैसे पत्र के सम्पादकीय लेखक के
दायित्व का निर्वहन भी करता है, लेकिन कभी भी अपने वसूलों से समझौता करता नहीं
दिखता |कठिन से कठिन समय में भी वह अपने दायित्त्व से मुख मोड़ता नज़र नहीं आता
|यद्यपि यह कार्य विपरीत दिशा में जाती हुई दो नौकाओं में पैर रखने जैसा ही था
|किन्तु कामरेड अंसारी मुस्किल हालातों का सामना करना बखूबी जनता था |
यद्यपि इतिहास का छात्र होते हुए भी उसे व्यवहारिक जगत की जानकारी न
के बराबर थी जो उसके परिवार के द्वारा उसे उपहार स्वरुप मिली थी |क्योकि उसके
परिवार की निगाह में यह कार्य उसके लिए था ही नहीं |जब उसका सामना इन वस्तुओ हुआ
तब वे उसके लिए बिलकुल नई प्रतीत हुई |जिन वस्तुओ से उसका अन्तराल था सिर्फ आस्थाओ
के कारण गौरान्वित महसूस करता था अब वह हकीकत में बदल चुकी थी |राकेश जी ने हिंदी
भाषा की उपेक्षा को भी बखूबी उकेरने की कोशिश की है |उनका नायक अंग्रेजियत की
दास्तान को जड़ से उखाड फेकने को उतावला दिखता है |यद्यपि उसको घुट्टी के रूप में
बचपन से अंग्रेजियत ही घूंट रूप में पिलाई गई थी | राजकुमार राकेश ने इस विरोध के
माध्यम से कान्वेंट स्चूलों में हो रही ज्यादतियों को दिखने की कोशिश की है
कि कैसे ये तथा कथित शिक्षा की ठेकेदारी
करने वाले ठेकेदार इन विद्यालयों के अन्दर राष्ट्रभाषा का अपमान करने का घृणित
कार्य करते हैं |लेखक अपने कहानी कौशल को और अधिक पुष्ट करने के लिए बीच बीच
मुहावरों का प्रयोग भी करता नजर आता है |
“जैसे वह कामरेड होने पर कंटीले रास्तों पर चल निकला था “
जिसका तात्पर्य प्रत्येक वस्तु निजी है एवं कुछ भी निजी नहीं है
|मजदूर आन्दोलन से जुड़ाव अमीनुद्दीन अंशारी के जीवन का टर्निंग प्वाईंट है जो उसे
जुझारू बना उसे हर परिस्थिति से निपाटने सक्षम बनाता है |जहाँ से लोगो के जीने की
प्रत्याशा, अस्मिता, समानता की शुरुआत होती है अंग्रेजी में वह दूर दूर तक नजर
नहीं आती है |किसी कहानी का प्रमुख तत्व उसका द्वन्द होता है जहाँ पर द्वन्द
समाप्त हो जाता है कहानी भी समाप्त हो जाती है| राजकुमार राकेश जी इस बात से पूरी
तरह वाकिफ है इस कारण उनकी कहानियों में उनके पात्र शुरुआत से ही द्वन्द करते
दिखाई देते हैं |नायक अमीनुद्दीन इसका जीता जगत उदहारण है |कहानी के कथानक को आगे
की ओर अग्रसर करने वाले अन्य पात्र भी कहानी में अवरोध न बनकर उसकी गतिशीलता को
बनाये रखते है |कहानी में चहुमुखी अन्याय का विरोध दिखाया गया है |ट्रक ड्राईवर
सार्दुल सिंह का अपने साथी प्रताप को डांटना इसी का हिस्सा है | सिपाही द्वारा डंडा
लेकर उसके पास आना और उस पर अन्याय करते हुए रुपये ऐंठना आज के वाहनों से वसूली की
वास्तविकता का परिचय है | किस प्रकार आम जनमानस को सरकारी लूटेरे लूट कर अपमानित
कर अपमान का घूंट पीने को मजबूर करते हैं | उसके पास उनका विरोध करने की ताकत नहीं
होती है |
पोते मुनीश को स्कूल भेजने के लिए जाने को तैयार होने पर भी बहू का झूठे
दिखावे के चलते उसके तैयार होने से पहले ही टैक्सी से स्कूल भेज देना परिवार के
विकृत होने का भयावह रूप है |जिसे अंसारी को भी बेवश हो सहना पड़ता है |जिसके कारण
उसे संसार के संबोधनों के प्रति नफ़रत होने लगती है जो उसके ह्रदय में आत्मग्लानी
का संचार करते हैं |
मृत कल्पना का शोकगीत मेंलेखक आज की सबसे विकराल समस्या बेरोजगारी को
लक्ष्य कर समाज में व्याप्त अनैतिकता की ओर ध्यान खीचने का प्रयास किया है|जिसके कारण समाज का
युवा वर्ग गुमराह होकर अनैतिक राह पर चल पड़ता हैं | बेरोजगारी से ग्रसित युवा वर्ग
का अपना सारा सुख दुःख बेरोजगारी की भाण में जल जाता है न तो उसे अपने घर में
शान्ति मिलती है न ही बाहर, और उसका पूरा समय बेरोजगारी और महत्वाकांक्षाओं की
पूर्ति में ही समाप्त हो जाता है |अंतत: जीवन दुःखपूर्ण हो जाता है |जैसा कहानी के
पात्र चिरंगी लाल भार्गव का हो जाता है |जो अंत में पुन: अपनी सांसारिक चमक धमक
छोड़ पुन:अपनी दुनिया में वापस आकर ही खुश होता है जहाँ उसकी पत्नी जो दिनभर अपनी
दिनचर्या करती है और सुखी रहती है
अदृश्य अवतार भटकती आत्माएं-रिश्तों के गिरते
परिदृश्य का उत्कृष्ट नमूना है |जिसमें सगे से सगे रिश्ते भी स्वार्थपरता की भेंट
चढ़ जाते है |किस कद्र अंधविश्वास, अंधभक्ति समाज के अन्दर व्याप्त है, कि कोई भी
कार्य बिना किसी ज्योतिष के विचार के नहीं कर सकते इसका जीता जगाता उदहारण कहानी
के पात्र डिंगा सिंह सरीन के चरित्र में बखूबी दिखता है |जिसके कारण उसका दाम्पत्य
जीवन भी बर्बाद हो जाता है |साथ ही लेखक ने स्त्रियों के प्रति समाज के नजरिये का
खाका खीचा है |जिसे सुलभा एवं मिस दारूवाला के चरित्र रूप में देखा जा सकता है |
इन सभी परिदृश्यों
के कारण उसका अंतर्मन अशांत हो जाता है जो उसके जीवन में एक ऐसा भूचाल लाता है कि वह
घर बार छोड़ कुछ समय के लिए गायब हो जाता है किन्तु जब पुन: परिदृश्य पर प्रकट होता
है तब तक उसके प्रति लोगों की धारणा बदल चुकी होती है | जो अनेक शंकाओं एवं मिथकों
को जन्म देने वाली थी| वह पूरी तरह विक्षिप्त हो चुका था, कुछ मित्रों के द्वारा थोड़ी पहल की
जाती है किन्तु बारिश में उसके दुबारा गायब हो जाने पर लोगो का प्रयास न कर अपने
अपने कार्यों में लग जाना उनकी स्वार्थ परक सोच एवं संवेदनहीनता को दर्शाता है,
जैसा आज के समाज में लोगो में दिखाई देती है |न तो पहली बार की तरह रिश्तेदारों
द्वारा वह खोजा जाता है न ही मित्रों द्वारा न ही पत्नी द्वारा ही |ठीक उसी प्रकार
जैसे बेकार पड़ चुके अंगो को काटकर बहार फेंक दिया जाता है उसी प्रकार डिंगा सिंह
सरीन से भी समाज ने अपने से अलग कर लिया |
साउथ ब्लाक में गांधी कहानी आज आफिसों में
अफसरशाही के रवैये को दर्शाती कहानी है| एक बास अपने मातहतों के निजी मामलातों में
दखलंदाजी करन अपना अधिकार समझते है |और ऑफिस की सभी मर्यादाओं को अपनी निजी जागीर
समझ कर मातहतों को प्रताड़ित करने का उपक्रम करते रहते है |न कुछ की बातों को भी
लाग लपेट के साथ बहुत बढा चढ़ा कर बतंगड़ बनाने से गुरेज नहीं करते | कहानी आज के
मित्रो की कहानी बयां करती नज़र आती है किस प्रकार एक मित्र पूंजी की चकाचौंध में
एक मित्र को भुलाकर मात्र पूँजी के हाथों की कठपुतली बन मर्कट की तरह नाचता नज़र
आता है |और उस मित्र को भुला देता मुनाफा ही मुनाफा देखता है जिसने उसकी मदद
ऐनवक्त की थी |स्वार्थ में इस कदर डूब जाता है की अपनी तरजीह भी भुला बैठता है |
समाज के सारे सरोकारों को ताक पर रखकर
कार्य करने पर आमादा रहता है |फिर चाहे वर्तमान का व्यक्ति हो या आतीत का जैसा की
लेखक ने दिखने की कोशिश की है |की देश की सर्वोच्च संस्था का कार्यपालक ही क्यों न
हो सभी इस मायाजाल में फंसे नज़र आते है और उपाय खोजते खोजते अपने अस्तित्व को भी
भुला बैठते हैं |
याकि पाँच हाथों
वाली औरत- |समाज
के सबसे उपेक्षित वर्ग के दुःख दर्द को बयां करती इस कहानी को अभिजात्य वर्ग के
अत्याचारों एवं शोषण के विरुद्ध आक्रोश के रूप में देखा जाना चाहिए | समाज में व्याप्त
भ्रष्टाचार, अनाचार का पर्दाफास करने की एक पहल है |राजकुमार राकेश जी ने सरकारी
दफ्तरों में व्याप्त भ्रष्टाचार से प्रारम्भ करके समाज के निचले तबके के अपमान तक
पहुँच जाते है | कहानी पढ़ते-पढ़ते पाठक के अनादर भ्रष्ट नौकरशाही जो आकंठ
भ्रष्टाचार में डूबी है के प्रति जनाक्रोश उत्पन्न हो जाता है |किस प्रकार आम आदमी
मजाक बन मूकदर्शक मात्र रह जाता है |ठीक उसी प्रकार जैसे पिंजरे के अन्दर बंद
पक्षी स्वतंत्र रहते हुए भी स्वतंत्र नहीं होता है |कहानी के माध्यम से लेखक ने
रोजमर्रा की वस्तु केरोसिन की कालाबाजारी के प्रति अफसरों के निठल्लेपन एवं
बेईमानी की नियति को उजागर किया है |जिस पर एक ईमानदार महिला के माध्यम से इसे समाप्त
करने के प्रति की गयी एक ईमानदार कोशिश को दिखाया है | समाज की कुरीति वैधव्य जीवन
जीने वाली औरतो के उत्पीँडन को भी बाखूबी दिखाया है जो समाज के तथाकथित ठेकेदारों
की कठपुतली की तरह कार्य करने को मजबूर है |जो समाज में हो रहे अत्याचारों के
विरुध्द न्याय दिलाने का झूठा दंभ भरता है | ऑफिस के लोगों
द्वारा आधुनिकता का राग अलापने के सहारे सही को गलत और गलत को सही सिद्ध करने की
मुहिम में लगे रहना आज के युग का मानों चलन हो गया है |उच्च अधिकारीयों का अपने
अधीनस्थ अधिकारीयों पर रौब गांठना एवं अपने अहम की तुष्टि करना जिसके कारण कनिष्ठ
का वरिष्ठ के प्रति बगावती तेवर दिखाना आम बात हो गयी है |लेखक ने बिगड़ी हुई
दिनचर्या को सुधारने के लिए एक सोच उत्पन्न करने एवं भ्रष्टाचार मिटाने के प्रति
एक विजन प्रस्तुत करने के साथ एक सन्देश देने का प्रयास किया है |यदि हौशलों को
पंख लग जाय तो सारी दुनिया को भी नापा जा सकता है जो काम पाँच लोग नहीं कर सकते
हैं उसे एक कृशकाय कोमलांगी द्वारा संपन्न कराकर जड बनती जा रही कार्यालयी
संस्कृति का पटाक्षेप करते हुए कर्तव्यबोध की ओर ईशारा किया है |
पिटती हवा का रुख और मेंढा में लेखक ने समाज में फ़ैली हुयी कुरीतियों की ओर
ईशारा किया है |आज जब दुनिया चन्द्रमा में पहुँच चुका है एवं मंगल पर जाने की
तयारी में जुटा है ऐसे समय में हम छुआछूत बलिप्रथा जैसी सामाजिक कुरीतियों में फंस
निरीह प्राणियों की हत्या जैसे जघन्य कार्यों को अंजाम देने को तत्पर दिखते है |आई
हुई समस्त आपदाओं के लिये गरीब लोगो को ही निशाना बनाना तथा समस्या का निदान भी
उन्ही गरीबों के धन में देखना जैसे हमारा धर्म बन गया है |फाँसीवादी ताकतों के
द्वारा जितने भी आडम्बर हो सकते है करते हैं इसके नई नई कहानियां गढ़ी जाती हैं
|जैसा सोहण सिंह एवं उसके साथियों द्वारा गढ़ी जाती हैं |किन्तु स्वारू जैसे
धर्मभीरु द्वारा भी बेजुबान के प्राण रक्षा हेतु कमर कस खड़ा होना पड़ता है |
अधर - कहानी समाज में
मानवता को भी कलंकित करती जाति व्यवस्था पर तीखा तंज है |किस प्रकार एक दलित को
समाज में हर जगह अपमान का घूंट पीना पड़ता है| गुरु-शिष्य जैसे पवित्र रिश्ते को भी
नापाक करती लालच को बताती है |जिसकी कीमत हरिमोहन नमक दलित लड़के को शिक्षा से लेकर
नौकरी तक में चुकानी पड़ती है |उच्च वर्ग अपनी विफलता एवं बच्चों के नकारापन को दोष
न देकर इसका ठीकरा आरक्षण पर फोड़ता नज़र आता है |जैसा कि गुरुजी द्वारा आरक्षित
वर्ग के प्रति बयानबाजी जिसमे उसके पूर्वजों का जिक्र किया जाना उनकी खीझ को और
अधिक स्पष्ट करता है |गुरूजी द्वारा सुरक्षा की सीख भी अपने नकारा पुत्र के प्रति
सहानुभूति प्राप्त करने का जरिया मात्र है |वे स्वार्थ में इतने अंधे हो गए जैसे
धृतराष्ट्र दुर्योधन के मोह में मन से भी अँधा हो गया था |लेखक ने कहानी के माध्यम
से शहरी जीवन की सच्चाई का खाका खीचने का प्रयास किया है | किस प्रकार
जीविकोपार्जन में लगे व्यक्ति को मुहमाँगा धन खर्च करने पर भी नारकीय जीवन जीने को
विवश होना पड़ता है |बाहर से जातिव्यवस्था
के बंधनों से मुक्त दिखने वाले शहरी जीवन की जड़ों में भी किस प्रकार जातिव्यवस्था
लिपटी है |इसका उदहारण कहानी में मिल जाता है जिससे सिद्ध हो जाता है की जाति
व्यवस्था का दंश व्यक्ति को हर जगह झेलना पड़ता है फिर वह चाहे जहाँ चला जाता है |
हवा के तंग रास्ते से बाहर - कहानी के माध्यम
से लेखक ने यह बताने की कोशिश की है किस प्रकार व्यक्ति थोड़े से लाभ के लिए जितना
नीचे तक गिर सकता है गिरता है |कहानी में लेखक ने फैशनपरस्ती में आकर कुत्ते का
आंचलिक नाम रख उसके स्वभाव पर परदा डालने की कोशिश करता नजर आता है |जैसा आज
भौतिकता में अंधे होकर ऊपर से तो भले दिखते हैं किन्तु अन्दर से वही लालच से भरा
अंतरमन | जो मन लालच की पूर्ति न होने पर अपने वहशीपन की सारी हदें पर करने में भी
गुरेज नहीं करता है | जैसा कहानी का पात्र दयाल शरण के कथन से स्पष्ट होता है |
अभियोग एक अधूरी कहानी-यह एक छोटी कहानी है
जिसमे उन्होने आधी आबादी के दर्द को बयां किया है | भारतीय समाज एक तरफ तो यत्र
नार्यस्तु पूज्यन्ते तत्र रमन्ते देवता: की विचारधारा का सैद्धांतिक रूप से पालन
करने में विश्वास करता है तो दूसरी तरफ व्यवहारिकता में इसके विपरीत उस पर
अत्याचार करने में किसी तरह का गुरेज नहीं करता है जैसा कि उक्त कहानी में दामाद
बच्ची के जन्म पर झूठी खुशी जाहिर करना है |राकेशजी उक्त कहानी के माध्यम से भारतीय
जनमानस में लड़के के प्रति व्याप्त आशा और लडकी के प्रति हेयता को दिखाने का प्रयास
किया है |साथ ही बच्ची के जन्म पर पोंगापंथ का सहारा लेकर भविष्यबाड़ियाँ कर लोगो
को लूटने वाले पुरोहितों पर तीखा तंज कसा है |की किस प्रकार पर उपदेश कुशल बहुतेरे
की कहावत चरितार्थ करते जीजा को साली द्वारा दिया गया करारा जवाब उसके द्वारा नारी
अस्मिता के विरुद्ध सामाजिक रीतिरिवाजों के विरुद्ध खुली बगावत है |जो प्राचीनकाल
से स्त्रीधन में ही पुत्री का अधिकार है और पैतृक संपत्ति पर नहीं जैसी विचारधारा
के विरुद्ध मनो शंखनाद है |
विधाओं का हस्तक्षेप
उर्फ़ विधाओं के बीच हस्तक्षेप- आज हम
नित विकास के नये आयाम गढ़ रहे है फिर भी हमारे सामाजिक ताने बने में ज्यादा बदलाव
नहीं हुआ है | आज भी समाज उंच नीच की परिधि को लांघ नहीं पाया है, गाहे वेगाहे वह
इसका प्रदर्शन जरूर कर देता है |आज की मौकापरस्ती भी लेखक ने दिखाने की कोशिश की
है |जो मास्टर दीनदयाल के चरित्र में स्पष्ट दिखती है | आज आधुनिकता ने इस कदर
सामाजिक ताने बाने को तहस नहस किया है | जिससे सारे सामाजिक सरोकार टूटने के कगार
पर पहुंच गए है |जिसका मुख्य उद्देश्य अपना हित साधन करना है चाहे इसके लिए किसी
को रास्ते से हटाना पड़े हटायेगे |
वक्त का चेहरा- एक कहावत है वक्त सबको अपनी औकात से वाकिफ करा
देता है उसे किसी का भय नहीं होता है |जैसा कि हमारे पुरुष प्रधान समाज में पुत्र
को महत्ता दी जाती है पुत्री को दोयम दरजे का मन जाता है |और हमेशा पुत्री को
बन्धनों में बांधने की पुरजोर कोशिशे की जाती है जबकि पुत्र पर ऐसे कोई प्रतिबन्ध
नहीं लगाये जाते |जिसके कारण पुत्रियों को हमेशा एक सहारे की जरूरत महसूस होती रहे
उसीसे सरे दायित्वों की पूर्ति की उम्मीद लगायी जाती है जैसे उसका जन्म इसी कारण
हुआ हो |यदि पुत्त्रियों को मौका मिले तो वे वह सभी कार्य आसानी से करने में सक्षम
हो सकती है जो आम तौर पर पुत्रो से आशा की जाती है |यदि अवसर नहीं मिलाता तो कभी
कभी स्थिति विस्फोटक रूप अख्तियार कर लेती है, जिसे संभालना मुस्किल हो जाता है |
कहानी के अंत में पुत्री द्वारा परमा के रूप में आत्मविश्वास से लबरेज दिखाई पड़ना |
ज्यों प्यारी कोई चीज पास आती है- राकेशजी हमेशा से समाज के दबे कुचले लोगों की
मनोभावनाओं को उकेरने के लिए जाने जाते है |उक्त कहानी में सामाजिक तौर पर दलितों
की स्थिति आत्मसम्मान का जिक्र किया गया है |किस प्रकार प्रशासन मूकदर्शक बना
अतिशय उदासीन बना देखता रहता है |परिणामस्वरुप न जाने कितने लोग असमय काल कवलित
होते रहते है तथा सामाजिक अन्याय को सहकर भी चुप रहने को मजबूर होते हैं |यदि इस अन्याय
के प्रति यदि वे खड़े होने की कोशिश करते है तबी समाज के तथाकथित ठेकेदार उसी
व्यक्ति को गुनाहगार साबित करने में कोई कोर कसार नहीं रखते |और असली मुजरिम
मुखौटे के पीछे छिप जाता है और उसकी जगह जुर्म के विरुद्ध आवाज उठाने वाले व्यक्ति
को खड़ा कर दिया जाता है |तथा गुनाह करने वाले लोग लोगो की आँखों में धुल झोकने में
कामयाब हो जाते है | थाने में शिकायत करने के बावजूद थाना का हरकत में न आना आज के
परिदृश्य की हकीकत बयां करता है |
वियावन: एक उत्तर आधुनिक रामायण- भारतीय समाज में जाति की जड़े इतनी मजबूत है की
उन्हें तोड़ पाना आसन कार्य नहीं है |मानव जितना विकास का दंभ भरता जाता है वह इन
अंधकूपों में उतना ही डूबता जाता है |समाज में ऊंच नीच की खाई से ही समाज में
विषमता के अंकुर फूटे जो वृक्ष बनकर हमारे समाज के लिए ही नासूर बं गए | यह नासूर
बढ़कर इतना बड़ा हो गया की सारी औषधियां मिलकर भी इसे नहीं भर सकीं और यह रिसता ही
रहा |इस रिसाव ने न जाने कितनी जिंदगियों को निगल लिया और अभी न जाने कितनी को और
निगलेगा |पुरुष प्रधान समाज में स्त्रियों को दोयम दर्जे का माना जाता है और उसे
मात्र भोग की वस्तु के अतिरिक्त कुछ भी न समझा जाता है |समाज का उसके प्रति किये
गए अपराध को अपराध की मान्यता न दिया जाना एक प्रवृत्ति बन चुकी है | समाज के लिए
अभिशाप बन चुके अस्पर्श्यता को बयां किया है |किस प्रकार से एक शूद्र को सामाजिक
सरोकारों से दूर रखने की भरपूर कोशिश की जाती है कि न तो उसे रिस्तो के निभाने की
तमीज होती है न ही न्याय मांगने की आजादी ही ये सरे अधिकार उच्च वर्गों तक सीमित
हैं |इन अधिकारों की आड़ में उन्हें सारे अपराध करने की खुली छूट है जबकि निम्न
वर्ग को केवल सुनने और सहने की नियति है |जिसे तथाकथित पोंगापंथ ने और अधिक आग में
घी डालने का कार्य किया करता है |या यूं कहे कि यह वर्ग समाज में भय और कष्ट को
अपनी सहमति दे समाज में एक विषाक्त वातावरण तैयार कर समाज तोड़ने का ही कार्य करता
है |अपनी झूठी शान बचाए रखने के लिए वह अपने कुतर्कों का सहारा ले आम व्यक्ति का
जीना दुर्भर कर देता है | अपने द्वारा किये गए कुकृत्यों एवं पाखंड से शर्मिन्दा
होने के बजाय अपना दोष दूसरे पर मढ़ ठीक उसी कहावत को चरितार्थ करता है सौ-सौ चूहे
खाकर बिल्ली चली हज करने |किन्तु वह भूल जाता है की जब एक स्त्री क्रोध में आ जाय
तो उसकी रक्षा कोई भी नहीं कर सकता है वह चंडी बं सबको नष्ट करने की क्षमता रखती
है |
उस आदमी की मुझे याद है- हमारे समाज में यद्यपि प्राचीनकल से ही
कर्मकंडों की प्रधानाता रही है| यही कर्म कांड हमारे आज हमारे समाज के लिए आडम्बार
बन गए है| लोगों के अन्दर मनगढ़ंत बातों का डर पैदा करके उन्हें विवेकशून्यता की
स्थिति में ला दिया गया है|जिसकी आड़ में लोग उनके अन्दर एक अंजना अनपहचाना खौफ भर
देते है जिससे वह उनके द्वारा बतायी गयी लीक से अलग न तो कुछ सोच सकता है नहीं कुछ
कर ही सकता है जिसका परिणाम भी अंतत: हमारे समाज को ही भुगतना पड़ता है |समाज का एक
वर्ग हमेशा दूसरों पर अधिकार रखना चाहता है इस कार्य के लिए वह अपनों को भी नहीं
छोड़ता है |आज इसकी बानगी गाहे वेगाहे देखने को मिल जाती है जब समाज में इन
मान्यताओं को जोर सर से प्रचारित कर इन मान्यताओं को समाज को मान्यता की मंजूरी
चंद लोगों की तुष्टी हेतु मिल जाती है और वे लोग उसका मौके बेमौके नाजायज फायदा
लेने से नहीं चूकते और वे अपने मनमुताबिक वह हर कार्य करवा लेते है जिसे वह करवाना
चाहते हैं | इसके लिए नए देवता पैगम्बारों का अविष्कार कर उनके नाम पर दिग्भ्रमित
कर भय का वातावरण तैयार करते है किन्तु इन अंधविश्वासों से निरपेक्ष व्यक्ति
प्रतिरोध की एक अमित इबारत लिख देता है और उसकी इबारत की इबादत के भंवर से यह तथा
कथित लोग अपने को बचाने में असहाय हो जाते हैं |
कुहासा- कुहासा कोई नाम नहीं है बल्कि अस्पष्टता को
उकेरती स्त्रियों के प्रति पुरुष की सोच को इनगिता करती कहानी है जिसमें लेखक ने
दिखाने की कोशिश की है की एक स्त्री को मात्र गुलाम बनाकर रखने की फितरत हमेशा से
पुरुष की रही है |किस प्रकार अपनी खुन्नस
अंतत:स्त्रियों पर ही निकालता है |पूँजी के आगे किस प्रकार मर्कट की तरह उसके
इशारों पर नाचता दिखाई पड़ता है |अपने झूठे दंभ के कारण वह उन कार्यों को करने लगता
है जिन कार्यों से पूरी मानवता शर्मसार हो जाती है |उसके इस कार्य की सबसे सरल एवं
सुलभ वास्तु एक स्त्री होती है जिस पर वह अपना पूर्ण नियंत्रण रखना चाहता है और
किसी भी कीमत में वह उसे उसका अधिकार देना नहीं चाहता |वह उसे समाज के सामने
नुमाइस बना पेश करना उसकी फितरत हो गयी है आज इसकी बानगी हर जगह देखने में मिल
जाती है |इस कार्य को करने में भले ही उसे जन ही क्यों न देनी पड़े किन्तु पूँजी के
निमित्त वह सारे रिश्तों की बलि देने को तैयार हो जाता है |
अलौकिक इच्छा का छिपा फल- आज हमारे नैतिक मूल्य इतने अधिक गिर चुके है
जिसकी कल्पना मात्र से हमार्री रूह कांप उठती है |हम सरे रिश्तों की परिभाषा धन से
करने देने लगे है |धन के आगे सब कुछ गौड़ हो गया है |फिर चाहे गुरू जैसा पवित्र
रिश्ता ही क्यों न हो | आज के राजनीतिक परिदृश्य की हकीकत को बताने का प्रयास किया
गया है की किस प्रकार आज गुरू जैसा व्यक्ति भी भौतिक चमक के आगे नतमस्तक होने को
विवस है |किस प्रका र से विभिन्न किस्म के पत्थर के टुकड़ों के माया जाल में फंसकर
लोग अपने कर्तव्य भूल इनके चमत्कार को नमस्कार करते नज़र आते हैं |और पोंगापंथियों
के ढोंग को सहर्ष स्वीकार करने को उत्सुक दीखते है जबकि ये पोंगापंथी उनकी भावनाओं
के साथ खिलवाड़ करने से नहीं चूकते |जैसा की कहानी के पात्र किश्नू का हाथ देक्खाने
के बहाने उसकी गरीबी का उपहास उड़ाने का प्रयास उसके सहपाठी द्वारा ही किया जाता है
और उसके गंदे गलीच होने का प्रमाणपात्र सबके सामने प्रस्तुत किया जाता है |जो लेखक
से सहन नहीं होता और वह उठ खड़ा हो वहा से चला जाता है तथा आत्मसम्मान की याद आते ही
किश्नू भी सभा छोड़कर वापस आ जाता है |
ई फार्मिंग के दिनों में
प्यार- भारतीय समाज में शादी से पहले प्यार को
गुनाह की दृष्टि से देखा जाता है |आज भी यह परमपरा है इश्क और मुश्क दोनों छिपकर
ही आनंद देते है | दिन प्रतिदिन अमीर गरीब के बीच की खाई घटने के बजाय बढ़ती ही जा
रही है | जब पूरा विश्व एक गाँव में तब्दील हो चुका हो ऐसे समय में टेक्नोलाजी का
ज्ञान न होना पिछड़ेपन को दर्शाता है |आज के युग में जब चाँद मंगल पर मनुष्य के
पहुँचने की होड़ मची हो ऐसे समय में एक अदद कंप्यूटर की जानकारी न होना किसी अपमान
से कम नहीं है जिसको राकेश जी ने बखूबी दिखाया है |आज आधुनिक तकनीकि का उपयोग करके
उन्नत खेती के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय बाजारों की जानकारी प्राप्त करके अपने
उत्पादों की सही कीमत इंटरनेट के माध्यम से प्राप्त कर सकता है |
यहाँ पर काला नामक नौकर बंता सिंह को पूरे
हालातों की जानकारी देता रहता है और बंता जाट के पुत्र के प्रेम एवं हनीमून जैसे
शब्दों के बारे बंता से पूंछता है जिसकी सजा भी उसकों बंता सिंह द्वारा दी जाती है
किन्तु वह सच्चाई को बिना किसी हिचक के कहता है |और समाज रिश्तों की बुनियाद जो
पूरी तरह से पूंजी पर टिकी हो जिसकी बानगी अचिन्तराम के गैस एजेंसी का बंतासिंह के
अंगूठे के निशान ले अटार्नी पावर अपने नाम कर लेना और इसकी सूचना पाकर बलवंता का
घर वापस आ जाना स्वार्थपरता की पराकाष्ठा को बताता है |
तथास्तु- मानव जब से होश संभाला शायद तब या उसके कुछ समय
के पश्चात् से वह वस्तुओं और स्थितियों के मध्य सामंजस्य बिठाने का कार्य करता आया
है यदि सामंजस्य बिठाने में असफल रहा तो उसे नियति मान नकारने के बजे स्वीकार करने
में अपनी भलाई मानता है चंद्रप्रकाश चौरसिया ऐसा ही पात्र है जो कठिनाई में भी सुख
ढूँढने का प्रयास करता है जबकि इंद्र जैसा व्यक्ति उसे दुखी करने के लिए किसी भी
हद तक जा सकता है |फिर चन्द्र प्रकाश उसमें भी सुख खोज सुखी रहने की कोशिश जारी
रखता है |
आज हमारे देश की स्थिति कुछ ऐसी ही हो
गयी है जिसके कारण आमीर गरीब के बीच एक गहरी खाई निर्मित हो चुकी है जिसे मिटने की
उच्च वर्ग सार्थक पहल करना नहीं क्योकि यही खाई उसके अस्तित्व का आधार है जब तक
खाई है तब तक उसका अस्तित्व है आज आम जन प्रयोग होता रहता है चाहे वह भावनात्मक
रूप से हो या आर्थिक रूप और बुजुर्वा वर्ग उसको करने के नित नये-नये हत्कंडो का
प्रयोग करता रहता है सामान्य जन जितना इन निकम्मों के लिए करते रहते हैं उनका
निकम्मापन उतना ही बढ़ता जाता है |शासं वर्ग न तो जनसामान्य के मरने कोई तालुक्क
रखता है न ही जीने से |वह तो अपने ऐशो आराम में अपनी मक्कारी को छिपाने के निमित्त
स्वांग रचता रहता है |आज आम्जन्मंस किस प्रकार दुखों के बोझ टेल दबा हुआ रहता है
और शासकवर्ग उस पर जितने अत्याचार संभव हो सकते है करता रहता है जैसा की कहानी के
पात्र इंद्र द्वारा चन्द्रप्रकाश की मृत पत्नी के दुःख में दुखी होने के बजाय
चन्द्रप्रकाश की सवारी करने की कमाना रखता है और निर्लज्जता दिखाते हुए सवारी भी
करता है |वह अपनी स्वभावगत कमजोरी को छोड़ने के लिए कतई तैयार नहीं दिखता है |आज के
राजनीतिज्ञों की तरह हर जगह अपनी हेकड़ी दिखाने से बाज नहीं आता भले ही कंडक्टर
जैसे बदजात से पिटने का मामला हो या अन्य मामले हों वह शर्म महसूस करने के बजाय
बेशरमी की सारी हदें पर कर जाता है |और अपनी मानसिकता के अनुरूप कार्य रूप देना
जिसका दंड चंद्रप्रकाश को सहना पड़ता है और स्वम वहां से भाग खड़ा होता है |और अपनी
करतूत को अपने आका विष्णू के सामने दन्त निपोरते हुए निर्लज्जता के साथ बयां करत
है |और अभी भी उसको प्रताड़ित होता हुआ देखना चाहता है की अब वह स्वर्ग से ही उस पर
नजर रख लेगा |आज का हमारा राजनैतिक एवं पूंजीपति वर्ग ऐसा ही हो गया है |उनका आप
चाहे जितना भला कर से उसके मिशनों को पूरा करने अपना जी जन लगा दें किन्तु मौका
पड़ने पर वह ठेंगा दिखने से बाज नहीं आयेगा |इसके लिए वह नित नये-नये हथकंडे जिनमें जातिवाद, धर्मवाद, रंगवाद
,भाई-भतीजावाद, क्षेत्रवादआदि वादों को जन्म देकर आमजनमानस को उस चक्रव्यूह में
धकेलने का प्रयास करता है जिस प्रकार मकड़ी के जाले में अरझा हुआ कीड़ा मकड़ी का
शिकार बनता है | अनाचार,अत्याचार ,व्यभिचार,और न जाने कितने चारों में रत-दिन एक
किये हुए रहते हैं और ये हिजड़ों की तरह निर्लज्ज बने दांत निपोरते रहते हैं | राजकुमार राकेश ने अपनी “कला” का सौंदर्य “विरोध
और संघर्ष” में खोजा है |यह हिंदी की एक बड़ी
उपलब्धि है |वास्तव में सुन्दर वही होता है जो सच होता है ,संघर्ष ही हमारे
समाज का सच है अत: संघर्ष ही सुन्दर है |यह संघर्ष ही प्रकति के विकास का चेतन
कारक है|जीवन यात्रा की मुख्य गति है ,जो लेखक इस संघर्ष को दरकिनार करता है वह
सफल कलाकार नहीं हो सकता है |एक सफल कलाकार वही है जो तमाम संघर्षों के बीच
“संतुलन” की खोज करता है |राजकुमार राकेश का पूरा साहित्य संघर्ष और संतुलन के खोज
की कलात्मक उपलब्धि है |परस्पर विरोधी तत्वों के संघर्ष का तार्किक समन्वय है यदि जीवन की विडम्बनाओं
में मनुष्यता की गहन पड़ताल करना है तो राजकुमार राकेश से बेहतर कोई दूसरा लेखक
नहीं है |
Pradumna kumar singh
Janpad
banda
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