रविवार, 21 दिसंबर 2014

अवधी कवितायेँ -मृदुला शुक्ल



कविता  लिखना और कविता को आम-जन जीवन का दस्तावेज बना देना अलग-अलग बातें हैं |जिस कविता से कवि की पहचान नहीं होती तो ज़ाहिर है वह कविता जीवन से सीधे संवाद भी नहीं कर सकती कवि की पहचान अपनी जनपदीय रागात्मकता से बनती है। त्रिलोचन शास्त्री युवा कवियों से कहा करते थे कि यदि तुम्हें कवि के रूप में अपनी पहचान निर्मित करानी है तो तुम जहां के रहने वाले हो वहां का जन-जीवन निकट से देखो। अनपढ़ लोगों को बात करते हुए सुनो। उनसे भाषा सीखो। और अपनी कविता में उनका जीवन अपनी भाषा में इस प्रकार रचो कि उनका परिवेश उसमें अभिव्यक्त हो। तुम्हारी काव्य-भाषा उनकी बोली-बानी के शब्दों से सुगन्धित हो।  हो। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने भी लिखा है कि देश प्रम की शुरूआत स्थानीय प्रेम से होती है। जिसे अपनी जन्म-भूमि से कोई लगाव नहीं है उसे अपने देश से कैसे लगाव होगा। कविवर रसखान ब्रजभूमि ब्रजपति और ब्रजभाषा पर न्योछावर थे। त्रिलोचन अवध के रहने वाले थे। अतएव उनके काव्य में अवध के जनपद का जीवन अभिव्यक्त हुआ है।केदार बाँदा के रहने वाले थे अत: उनकी कविताओं में बाँदा और बाँदा की प्रकृति का विहंगम चित्र उपस्थित है |समकालीन कविता में भी लोकजीवन से जुड़ा कोई भी कवि अपनी जमीन को नहीं भूल पाया यही जमीन कविता की उर्जा है , कविता का कारखाना है ,विजेंद्र , निलय, केशव, की कवितायें इस बात का पुख्ता प्रमाण हैं |लोक-आसक्ति की इस परम्परा का निर्वहन करने वाली कवियित्री मृदुला शुक्ल में  “लोक” का अलहदा अंदाज़ मिलता है | अपने कविता संग्रह “उम्मीदों के पाँव भारी हैं” से चर्चा में आयीं | इला त्रिवेणी सम्मान से सम्मानित कवियित्री मृदुला शुक्ल अवध की रहने वालीं हैं उन्हें अवधी जमीन और जमीन से जुड़े जन जीवन का बखूबी ज्ञान है उनकी रचनात्मकता का दूसरा पक्ष ये है की वो अवधि में भी कवितायें लिखतीं हैं किसी भी लोकभाषा में कवितायेँ लिखने के लिए उपभुक्त जीवन की सच्चाई के साथ-साथ ध्वन्यात्मक अर्थों का शैल्पिक गुम्फन अनिवार्य हो जाता है |यह किसी कला से कम नहीं है | यही कला “क्रिया-रूपों” से संगति सुनिश्चित करती है | मृदुला शुक्ल की अवधी कवितायें इस श्रमसाध्य कला और जमीनी हकीकत का विलक्षण आमेलन है आइये आज “लोकविमर्श” में हम मृदुला शुक्ल की अवधी में लिखी गयीं कुछ कवितायें पढ़ते है


मृदुला शुक्ल की अवधी में कवितायें

1

कलुआ क माई
भिन्सहरें उठी के
हमका जड्वाइदेत

न कथरी बा
न गुदरी बा
पेड़े के तरे
हम परा अही
न झोपडी बा न महल अहै
गोरुअन से बदतर
जिअत अही

गोरुअन की मड़ही
में टटरी अब बंधे लाग
जाड़ा बाढ़ी
मुल हमरे तो मुड़े
भीजी ई पूस माघ
जाड़ा गाढ़ी

ई बना रहे
झबरा कुकुरा
जे रतिया की दंदाइ देत

कलुआ क माई
भिन्सहरें उठ के
हमका जड्वाइदेत

उनके खातिर
तो सिउटर बा
फिर साल ओढ़
कनवऊ बांधे
दिन रात बरै
कउड़ा तापें
घुघरी गंजी और रस चांपे
दिन रात देह
थर थर कापें
न दउरिऊ से हमका ढाके

अब हमें समझ में आवा
की झबरा बिन
जाड़ काटे न कटी
झबरा से
हम रिसिआन रहे
जब हम पे
टांग उठाई देत

कलुआ क माई
भिन्सहरें उठ के
हमका जड्वाइदेत।



2


कमल नाल से टूटि गयो /पंजा भयो लाचार
आपु आपु के राज में /बढ़नी के ललकार

लईके बढ़नी हाथ /में कहैं केजरीवाल
अब हमही उत्तर अही/हमही अही सवाल

भोर भये सब छुपि गए/ लोखरी और सियार
बिनु मालिक के गाँव माँ/ कुक्कुर हगें दुआर

फटी रजाई माघ माँ जस कोढ़ी के खाज
भेस बदल पुनि पुनि फिरे /नेतन केर समाज

नयी पार्टी राज नवा /सबका देहु बताय
चिकवा लेई बोकरी चला/ खैर मनावे माय


3

रहट रहा खेत में
औ कोल्हू सिवान में
रात भर रखावे खेत बैठ के मचान में
पेट में न अन्न रहा
देहि पे न नरखा
प्रेम औ पिरीती रही
रीति रही नीति रही
तब जीयु जहां में
का इहै उ गाँव या का इ है उ देश या

गाँव गाँव बिजुरी के अन्जोरे
चौंधियात बा
हर नाय हेंगा नाय
फर नाय बर्द नाय
थ्रेसर औ ट्रेक्टर बा खेत खलिहान में
मकुनिऊ का कोंचा न जुहात रहा जेकरे
अब तीन जुनी दाल रोटी साग और भात बा

यहिका अंजोर कही
याकि अंधियार कही
केहू किहु से बोलई न
केहू दुआरे डोलई न
सांझेंन से कुली जवांर
देखत बिग बॉस बा
का इहै उ गाँव या का इहै उ देस या
                      मृदुला शुक्ल 





5 टिप्‍पणियां:

  1. ई बना रहे
    झबरा कुकरा
    जे रतिया की दंदाई देत ।
    वाह क्या मार्मिक बिंब है।

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  2. ई बना रहे
    झबरा कुकरा
    जे रतिया की दंदाई देत ।
    वाह क्या मार्मिक बिंब है।

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  3. अनुभूति को साकार करते बिम्बों का सजीव् चित्रण

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  4. मृदुला जी की कवितायें अवधी के जनपदीय लोक को आख्यायित करने वाली कवितायें हैं । इन कविताओं मे सतही ग्रामीणता बोध नहीं वरन गंवई जीवन का सफल यथार्थ है । लोक को लोक की भाषा मिली है यह इन कविताओं की सबसे बड़ी जीवटता है । और इस सहज जीवटता की कवि मृदुला शुक्ल को बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएँ !

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  5. अवध मेरा भी क्षेत्र है इसलिए अवधी में इन सुन्दर रचनाओं का आनद भी दूना हो गया ! मृदुला जी को बधाई !

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