नरेन्द्र कुमार
की कविताएं
उनकी भूख बढ गई है
पंजे और भी तेज हुए हैं
दाँते और नुकीली
आँखों की चमक
गहरी हो गई हैं
नरेन्द्र कुमार की भाषा तनाव की भाषा है इन कविताओं में
व्यक्ति द्वारा भोगी गयी परिवेशगत यातनाओं यथार्थ अनुभव है | एक ऐसा अनुभव जो तनाव
को जन्म देता है | जिसमे बेचैनी है , आक्रोश है , कुछ कुछ रीतिगत शिल्प की
टूटन है | आदर्श के नज़रिए से देखे जाने पर
यहाँ मूल्यों की टूटन भी है | उदार लोकतंत्र में पूंजीवादी शक्तियां बहुत कुछ तोड़
रही हैं कवि टूटन को सजग ढंग से देख रहा है समझ रहा है और जिस जमीन पर खड़ा है उस
जमीन की धसकन से यथार्थ तनाव को जन्म दे रहा है | यहाँ पर यथार्थ का
तनाव भाषा को अधिक जिम्मेदारी दे
देता है | भाषा एक कारगर हथियार की तरह अपनी जगह खुद तय कर रही है | जो कवि के
अंतर्द्वंद को कविता में रूपायित कर देती है| भाषा केवल कविता तक सीमित नही रह
पाती वो कवि से पृथक होकर उस जनसमुदाय का सामूहिक प्रतिनिधित्व करती है | जो
नवउदारवादी व्यवस्था में लोकतान्त्रिक अवमूल्यन को , टकरावो को , बिखरावों को , छल
को , भोग रहे है | पूँजी के महायज्ञ में तिल तिल आहुति बन रहे है | नरेन्द्र कुमार
केवल शीर्षक कहकर संतुष्ट नही होते समूची सृष्टि की चीर फाड़ करते है तनाव के जितने
भी कारण है सब की समीक्षा करते है कविता को भावुकता की अंधी गलियों में नही ले
जाते बल्कि एक पत्रकार की तरह वस्तुपरक मूर्तन का सहारा लेते है इसलिए उनकी हर एक
कविता का कंटेंट प्रभावी और सामयिक है |
आज हम लोकविमर्श युवा कवि नरेन्द्र कुमार की कविताओं का प्रकाशन कर रहे हैं इन कविताओं की कविताओं की जानकारी मुझे फेसबुक से मिली कल उन्होंने लोकविमर्श में प्रकाशित करने के लिए
अपनी कुछ कवितायें भेजी जिसे आज हम आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहें है
नरेन्द्र कुमार की कवितायें
1 शोध
अधखुली
पलकों के
आगे
नींद
नहीं, स्वप्न नहीं
करता
रहा उन
दिनों
सिर्फ
निष्फल प्रयास
साम्यवाद,
समाजवाद से
आगे
मेरे
विचार जा
रहे थे
उधर
कोई लगातार
साँकल
बजा रहा
था
मेरी
तंद्रा टूटी
क्या
मेरी शोध
पूरी हुई
किवाड़
की सूराख
से
नजर
आया
प्रशस्ति-पत्र लिये
कुछ लोग
आवाज
दे रहे
थे
क्या
पूँजीवाद झुक
गया था
या
बाहर समाजवाद
खड़ा था
2 कविता//भूख
उनकी भूख बढ गई है
पंजे और भी तेज हुए हैं
दाँते और नुकीली
आँखों की चमक
गहरी हो गई हैं
हल्के पदचाप
कान खङे
लार टपकाते
हवाओं में
शिकार की
गंध के पीछे
बढते आ रहे हैं
बस्ती की ओर
3 सड़ांध
शहर के
रिहायशी इलाके से
अलग थलग
पड़ी थी वह कब्रगाह
समस्या बनकर
जन-जीवन की
शहर की तरफ
हवा के झोंको के साथ
आती रहती सड़ांध
उन कब्रों से
अनेकों बार डाली गयी मिट्टी
पर,आती ही रहती
वह तीखी सड़ांध
फिर से खोदी जाती कब्रें
मुर्दे जागे मिलते हर बार
देने लगते बयान
क्षत विक्षत कर
डाल दिए जाते
और भी गहरे...
कभी आये नहीं हाकिम
लिए नहीं गए उनके बयान
और वह तीखी सड़ांध
आज भी
वहां से आती है
4 शंकित मन
उनके तिरुपति और अजमेर की
त्वरित यात्राओं को देखकर
होने लगा है विश्वास
...कि वहीं मिलते होंगे आज्ञापत्र
हत्या,अपहरण और घोटालों के
तभी तो
हर आरोपमुक्ति के बाद
पुर्नदर्शनार्थ जाते हैं
...कि काले धन के चढ़ावों के बदले
होते होंगे नवीनीकरण
उन आज्ञापत्रों के
तभी तो
उनकी वापसी पर
लोग और आशंकित होते हैं
5 कविता-बावनदास
की
वापसी
--------------------------------
यह
कौन रो
रहा है
राजपथ
पर
क्रंदन
के बीच
अस्पुष्ट स्वर..
..
भारथमाता
जार-बेजार
रो रही
है
अरे
बावनदास..!
तुम
तो पूँजीवाद
के मारे
मर गए
दुलारचंद
कापरा के
गाड़ियों
के नीचे
दब गए
फिर
कैसे पहुंचे
राजपथ
पर
क्या
सरकार सचमुच
कमजोर हो
गई
आत्माओं
के लिए
जैमर नहीं
पंचसितारा
होटल में
पूँजीवाद
के हरामी
औलाद की
नींद
टूटती है
बियर
से कुल्ला
करता है
जवान
जागता है
कारगिल
की पहाड़ियों
पर
गोली
चलती है
किसान-मजदूर का
बेटा
प्यासा
मरता है
सारे
ग्लूकोज पी
गए
जवानों
को पत्ते
चबाना है
फिर
से खड़ा
होता है
जवान
पत्ते
चबाता है,रायफल उठाता
है
आबनूस
के फर्नीचर
पर
पूँजीवाद
रंभाता है
जवान
खुद को
रेगिस्तान में
पाता है
पेड़
नहीं,पत्ते
नहीं
फिर
गोली लगती
है
उसके
पास पेनकिलर
नहीं
सार
दर्द तो
पूँजीपतियों के
पास है
नेता
कहता है
जवान
पैसे के
लिए मरता
है
नेता
पैसे के
लिए जीता
है
बार-गर्ल्स के
कंधे पर
हाथ रख
उद्घाटन
के फीते
काटता है
रोड
पर चीखें
आती हैं
पूँजीवाद
बलात्कार करता
है
लेकिन
यह तो
रोज हर
कोई
चिल्लाता
है
नुक्कड़ों
पर,ड्राइंग
रूम में
फिर
तुम्हें क्या
तकलीफ थी
बावनदास...?
उसके
चेहरे पर
विद्रूप
मुस्कान आती
है
अबकी
समझ में
आया
पूँजीवाद
भी दो
है
एक
पूरब का,दूसरा पच्छिम
का
एक
जूते बनाता
है
दूसरा
हैट
दुलारचंद
कापरा सर
झुकाए
जा
रहा है
बावनदास
हँस रहा
है
(बावनदास और
दुलारचंद कापरा
फणीश्वरनाथ रेणु
रचित महान
आंचलिक उपन्यास
"मैला आँचल"के पात्र
हैं।)
नरेन्द्र कुमार
C/O-ललन कुमार सिंह
2/10 शिवपुरम,विजयनगर
रोड नं.-2
पो.-बिहार वेटनरी कॉलेज
पटना-800014
बिहार
C/O-ललन कुमार सिंह
2/10 शिवपुरम,विजयनगर
रोड नं.-2
पो.-बिहार वेटनरी कॉलेज
पटना-800014
बिहार
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