सोमवार, 31 अगस्त 2015



          कुंवर रविन्द्र के चित्रों का संसार



कुँवर रवीन्द्र के चित्र मानवीय यथार्थ की जनपक्षीय एवं  व्यवहारिक अभिव्यन्जना करते हैं । चित्र केवल अनुभूति के दायरे में सिमट कर नही रह जाते बल्कि संकटापन्न मनुष्यता की शाश्वत सत्ता की याद दिला देते हैं । उनकी कला कलागत मानकों के अनुरूप यथातथ्यवाद से पृथक परिप्रेक्ष्य ग्रहण करते हुए  द्वन्दों से प्रभावित मनुष्य की कल्पनाओं , भंगिमाओं , जिजीविषा को वर्गीय खांचे मे फिट कर देती है रवीन्द्र के वैचारिक सरोकार उनके द्वारा सृजित बिम्बों मे सुस्पष्ट देखे जा सकते हैं । उनके चित्रों में समाहित अकेलापन पूँजीवादी अलगाव और पीडाओं  का भीषण युग बोध है इस परिवेश की त्रासद निर्थकता व व्याप्त विघटनों को चित्रों मे केन्द्रित कर देने वाला चित्रकार रवीन्द्र ही हो सकता है ।रवीन्द्र के चित्रों का सौन्दर्य जीवन बोध है हर एक चित्र का सन्दर्भ सामाजिक द्वन्द से जुडा है व्यक्ति और चिडिया का संवाद द्वन्दों के बीच त्रासद पराजयों का आत्ममूल्यांकन है रंगों का सप्रयोज्य संयोजन तमाम सन्दर्भों को बहुआयामी विस्तार देतें हैं रंग निरर्थक नहीं हैं सुन्दर पुनर्रचना का प्रक्षेपण हैं । रवीन्द्र के चित्रों पर जो बहस 'लोकविमर्श' में चल रही है उस पर  आज युवा कवि प्रेमन्दन की प्रतिक्रिया मुझे प्राप्त हुई है प्रेमनन्दन लोकधर्मी कवि हैं उनकी कविताओं का ताना बाना प्रतिरोध की तीखी भंगिमाओं के इर्द गिर्द बुना रहता है पत्र पत्रिकाओं में उनकी कविताएं छपती रहीं हैं पर अपनी चर्चा से वो हमेशा दूर रहे है़ लोकविमर्श २०१५ का एक वाकया  मुझे याद आ रहा है जब प्रेम जी ने मुझसे कहा "कि हमारी कविताओं पर बात न हो वरिष्ठ लोगों पर चर्चा होना चाहिए हम और आप तो फोन पर चर्चा कर सकतें हैं" आत्ममुग्धताओं का यह दौर जब कि कवि खुद की सकारात्मक चर्चा न होने पर मित्रता को भी शत्रुता में तब्दील करते घूम रहें हों वहां प्रेमनन्दन जैसे निस्पृह एवं प्रतिबद्ध कवि का होना सुकून देता है प्रस्तुत है रवीन्द्र के चित्रों पर प्रेमनन्दन जी का हस्तक्षेप  




रंगों और शब्दों का अद्भुत कोलाज हैं कुंवर रवीन्द्र के चित्र 


समय की विद्रूपताओं और त्रासद यथार्थ को   अपनी तुलिका से चित्रित करने वाले, कुंवर रवीन्द्र अपने समय के विलक्षण कलाकार हैं | वे रंग और रेखाओं के सयोंजन से जीवन की संभावनाओं को जिंदा रखने और उन्हें संबल प्रदान करने वाले चित्रकार हैं  | उनके चित्रों में सर्वत्र दिखाई देने वाली एक  चिड़िया  उनकी इन्ही  प्रतिबद्धताओं का प्रतीक है | उन्होंने अब तक १७००० से ज्यादा चित्र बनाये हैं और वर्तमान की लगभग सभी साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं के आवरण में उनके बनाये चित्र दिखाई देते हैं | लगभग सभी प्रकाशन समूहों से हर साल प्रकशित सैकड़ों किताबों के कवर उनकी तूलिका से बने होते  हैं | शायद ही कोई ऐसा रचनाकार होगा जिसकी कविताओं पर उन्होंने चित्र न बनायें हों | उनके द्वारा बनाये गए विभिन्न कविता पोस्टरों में जब रंगों के साथ शब्दों की जुगलबंदी होती है तो कविता और चित्र दोनों का प्रभाव बहुगुणित हो जाता है | शब्दों में निहित ताप जब कैनवास पर रंगों को तपाता है तो मानो कविता में बिम्ब खिल-खिल उठते हैं और उनकी तपिश को बाखूबी महसूस किया जा सकता है |
 रवींन्द्र जी इतने सहज और सरल हैं कि बड़े और अपने समकालीन रचनाकारों के साथ-साथ वे नवोदित रचनाकारों की कविताओं पर भी चित्र बनाते हैं | हाँ , एक बात जरूर है कि ऐसा वे अपनी शर्तों पर ही करते हैं |  उनकी अब तक दर्जनों एकल एवं सामूहिक चित्र प्रदर्शनी देश के विभिन्न शहरों में लग  चुकी हैं वे कैनवास पर रंगों के माध्यम से कविता जैसे सहज और ग्राह्य चित्र बनाने वाले चित्रकार हैं | वैसे तो उनकी पहचान एक चित्रकार के रूप में ज्यादा है लेकिन वे जितने अच्छे चित्रकार हैं उतने ही बड़े कवि भी हैं | ये अलग बात है कि उनकी प्रसिद्धि एक चित्रकार के रूप में ज्यादा है |



एक चित्रकार और कवि के रूप में मैं उनके नाम से तो काफी पहले से परिचित था लेकिन उनसे साक्षात मिलने का अवसर मिला लोक विमर्श -२०१५ के पिथौरागढ़ के लोक विमर्श शिविर में | लोक विमर्श -२०१५ के सात दिवसीय लोक विमर्श शिविर की शुरुआत ही कुंवर रवीन्द्र की एकल चित्र प्रदर्शनी से हुई | ०८ जून २०१५ को पिथौरागढ़ में पहाड़ी स्थापत्य कला में निर्मित एक होटल “बाखली “ के एक विस्तृत हाल में रवीन्द्र जी की तूलिका से  सजे चित्र एवं कविता पोस्टर प्रदर्शनी को देखना –समझना मेरे लिए एक रोमांचकारी अनुभव था| इस प्रदर्शनी में उनके ६० कविता पोस्टर लगाए गए थे जिनमे धूमिल , मुक्तिबोध , नागार्जुन , रघुवीर सहाय , शील , मानबहादुर सिंह , केशव तिवारी ,नवनीत पाण्डेय , महेश पुनेठा , सहित हिंदी के तमाम कवियों की कविताएँ रवींद्र जी के कविता पोस्टरों में जीवन के विविध रंग बिखेर रहीं थीं उनके चित्रों में चित्रित विभिन्न कवियों की कवितायें जीवन के कुछ अलग ही तेवर दिखा रहीं थीं |


इस प्रदर्शनी के बाद अगले पूरे सप्ताह भर हम लोगों को उनके साथ रहने – बतियाने का मौका मिला | जैसे ही समय मिलता हम लोग उनको घेर लेते और उनके चित्रों के बारे में उनसे बात करते | वे मुस्कुराते हुए बड़े धैर्य से हम लोगों की बातें सुनते और हमारी शंका का समाधान करते | इस दौरान हमें कभी ऐसा नहीं लगा कि की हम इतने बड़े चित्रकार से बातें कर रहे हैं |  हम बच्चों के साथ उनका मित्रवत व्यवहार उनके बड़प्पन को और गरिमा प्रदान करता रहा और हम लोगों की नजरों में वे और सम्मानीय हो गए |  रवींद्र जी  रिस्तो में नजदीकी के साथ-साथ एक सम्मानित दूरी बनाए रखने वाले एक बेहद ही सहज और सरल इंसान हैं |  इस मामले में उनकी कविताओं, चित्रों और व्यक्तित्व में रत्ती भर का भी अंतर नहीं हैं | जैसा सहज , सरल उनका व्यक्तित्व है वैसी ही उनकी कविताएँ और उनके चित्र | वे अपने चित्रों में रंगों से कवितायें लिखते हैं और अपनी कविताओं में शब्दों से चित्र उकेरते हैं | वैसे तो उनकी पहचान एक चित्रकार के रूप में ज्यादा है लेकिन रवीन्द्र जी एक बेहतरीन कवि भी हैं | उनको कविता की पहचान है जब  कवितायें उनके बनाए पोस्टरों में चित्रित होती हैं तो यह सामंजस्य का एक ऐसा अद्भुत कोलाज बनता हैं कि कविता चित्र बन जाती हैं और चित्र कविता | आइए उनके इस अद्भुत कोलाज को हम भी महसूस करें 







प्रेम नंदन - युवा कवि एवं कहानीकार 
फतेहपुर 

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